15.मनुष्य आत्मा का मुक्ति योग :
मनुष्य को ब्रह्मज्ञान का प्राप्त होता है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ज्ञान में मनुष्य को परमात्मा का साक्षात् दर्शन होता है। ईश्वरीय ज्ञान मनुष्य को आत्मा को जान लेता है। कि, वो शरीर नहीं केवल एक आत्मा है। ईश्वरीय ज्ञान से मनुष्य को आत्मा का कार्य उद्देश्य जीवनकार्य के बारे में पता हो जाता है। कि, आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। आत्मा को मोक्ष प्राप्त करना है। ईश्वरी ज्ञान से मनुष्य जन्म मरण का चक्र को ब्रह्मज्ञान से जान लेता है। कि, मनुष्य केवल साधन है। आत्मा को परमात्मा रूप जान लेता है। आत्मा परमात्मा का एक अंश है। मनुष्य को जान होता है। आत्मा और परमात्मा के रूप केवल, मोक्ष प्राप्त करने हेतु मनुष्य जन्म हुआ है। मनुष्य आत्मा और परमात्मा बीच का अंतर जान लेता है। आत्मा का कार्य मोक्ष प्राप्त करना है। परमात्मा अपने अंश को सही दिशा दिखता है। मनुष्य जन्म से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
मनुष्य को ज्ञान होता है। कि , मनुष्य को जन्म - मरण के चक्र और लख 84 फेरे से मुक्ति पाना है। आत्मा को निराकार परमात्मा में एक होना है। मनुष्य को ब्रह्मज्ञान से जीवनकार्य ज्ञान हो जाता है। केवल, मनुष्य जन्म देवी कार्य करना है। आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। मनुष्य को अब ज्ञान हो जाता है। कि, वो मनुष्य नहीं एक शरीर भी नहीं है। मनुष्य को जान होता है। संयम एक आत्मा का परमात्मा अंश है। मनुष्य को देवी ब्रह्मज्ञान होता है। मनुष्य को यह जान होता है। संयम एक आत्मा है। मनुष्य का जीवन महात्मा होता है। एक ज्ञान का प्रकाश जा जाता है। मनुष्य का जीवन ज्ञान से भर जाता है। संयम को आत्मा के रूप में देखता है। आत्मा को परमात्मा के रूप पा लेता है। मनुष्य जीवन भक्ति से भर जाता है। मनुष्य का जीवन भक्ति से भरा होता है। मनुष्य जन्म देवी कार्य में सफल हो जाता है। मनुष्य का उद्देश्य जीवनकार्य को पाके धन्य होता है। मनुष्य जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है। मनुष्य जन्म देवी कार्य करने हुआ था। मनुष्य अपने जीवन में भक्ति के मार्ग अपनी देवी कार्य को ब्रह्मज्ञान से पा लेता है। ज्ञान से मनुष्य आत्मा को शांति प्रदान हो जाता है। मनुष्य का जीवन अनमोल रत्न हो जाता है। मनुष्य ज्ञान से संसार में ज्ञान रूपी तेज पा लेता है। जीवन जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। मोहमाया अंधकार से मुक्त हो जाता है। ज्ञानी पुरुष जीवन के प्रत्येक क्षण ज्ञान रूपी तेज से जीवन जीता है। मनुष्य ज्ञान को सबसे पहले रखता है। जीवन को प्रभुमय बनता है। मनुष्य को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होने के बाद प्रत्येक क्षण परमात्मा की चिंतन करता रहता है। सत्संग , सेवा और स्मरण करता रहता है। मनुष्य भक्ति से भरा जीवन जीता है। मनुष्य को ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने के बाद ज्ञान को जीवन में लाने के लिए भक्ति की जरूरी होती है। मनुष्य जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आत्मा, परमात्मा को जान लेता है। संयम को आत्मा के रूप जान लेता है। जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है।
मनुष्य को ज्ञान हो जाता है। संसार मिथ्या है। जीवन में अयोग्य कार्य करना मोहमाया अंधकार में जीवन जीना अपनी जरूरतों को पाना अनमोल जीवन को नष्ट करना । मनुष्य को ज्ञान होता है। आयु में निधन देह होता है। आत्मा की मुत्यु नहीं होती आत्मा अमर है। देह का नाश होता है। मनुष्य जीवन में भक्ति के मार्ग ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करता है। ब्रह्मज्ञान से मनुष्य आत्मा को जान लेता है। वो, शरीर नहीं केवल आत्मा हैं। आत्मा के रूप में परमात्मा का साक्षात्कार दर्शन होता है। कि, वो परमात्मा का अंश है। एक आत्मा!
मनुष्य के अंतिम समय जब मनुष्य देह से प्राण त्याग ते समय ब्रह्मज्ञान का चिंतन करता है। परमात्मा का ध्यान करते स्मरण करता है। स्मरण करते हुए प्राण त्याग देता है। मोक्ष धाम, परमात्मा के सरण में चला जाता है। परमात्मा, आत्मा को निराकार रूप में छमा लेता है।
उसी क्षण मोक्ष का द्वार खुल जाता है। आत्मा का मोक्ष प्राप्त होता है।


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