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Tuesday, July 21, 2020

अनुक्रणिका 16, क्षमा याचना : / जीवन की अनमोल विचार

16.क्षमा याचना : 



                                 

       ईश्वरीय ज्ञान के तरफ से आप सभी को धन्यवाद करते है।   इस पाठ्य में मनुष्य जीवन की सारी बाते सविस्तार से वर्णन किया गया है। मनुष्य जीवन में जन्म से लेकर मरण/ मृत्यु  तक का सफर दिया गया है। मनुष्य जीवन में देवी कार्य के बारे में बताया गया है। मनुष्य देह कार्य से मनुष्य जीवन कार्य तक का वर्णन दिया गया है।


       आत्मा का रहस्य ओर  आत्मा का कार्य के बारे में बताया है।  आत्मा किया है, आत्मा का उद्देश्य, लक्ष्य ओर जीवन कार्य  किया है। आत्मा ओर मनुष्य जीवन का रहस्य किया है। परमपिता परमात्मा के बारे में भी सविस्तर से  वर्णन किया है। आत्मा ओर परमात्मा का मिलन का सार किया गया है। मनुष्य जन्म अवतार आत्मा का मोक्ष / मुक्ति  का मार्ग बताया गया है। 



      ईश्वरीय ज्ञान में किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया गया है।  इस पाठ्य में वर्णन किया गया विचार सकारात्मक रूप में है। सत्य के आधारिक विचार बताया गया है।  फिर भी अयोग्य विचार दिया गया हो तो, क्षमा याचना करते है। ईश्वरीय ज्ञान आप सभी को सिर्फ ज्ञान की प्रेरणा देने का मार्ग बताया गया।   


       ईश्वरीय ज्ञान  सिर्फ आप से संदेश का मार्ग है।  आप के विरूद्ध कार्यवाही से ईश्वरीय ज्ञान जवाबदारी नहीं लेता है।  आप पढ़ना ही सीमित रखे।

                 


                   The end

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अनुक्रणिका 15, मनुष्य आत्मा का मुक्ति योग : /जीवन की अनमोल विचार

15.मनुष्य आत्मा का मुक्ति योग :


                    

       मनुष्य को ब्रह्मज्ञान का प्राप्त होता है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ज्ञान में मनुष्य को परमात्मा का साक्षात् दर्शन होता है। ईश्वरीय ज्ञान मनुष्य को आत्मा को जान लेता है। कि, वो शरीर नहीं केवल एक आत्मा है।  ईश्वरीय ज्ञान से मनुष्य को आत्मा का कार्य उद्देश्य जीवनकार्य के बारे में पता हो जाता है। कि, आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। आत्मा को मोक्ष प्राप्त करना है। ईश्वरी ज्ञान से मनुष्य जन्म मरण का चक्र को ब्रह्मज्ञान से जान लेता है। कि, मनुष्य केवल साधन है। आत्मा को परमात्मा रूप जान लेता है। आत्मा परमात्मा का एक अंश है।  मनुष्य को जान होता है। आत्मा और परमात्मा के रूप केवल, मोक्ष प्राप्त करने हेतु मनुष्य जन्म हुआ है। मनुष्य आत्मा और परमात्मा बीच का अंतर जान लेता है। आत्मा का कार्य मोक्ष प्राप्त करना है। परमात्मा अपने अंश को सही दिशा दिखता है। मनुष्य जन्म से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। 


      मनुष्य को ज्ञान होता है। कि , मनुष्य को जन्म - मरण के चक्र और लख 84 फेरे से मुक्ति पाना है। आत्मा को निराकार परमात्मा में एक होना है।  मनुष्य को ब्रह्मज्ञान से जीवनकार्य ज्ञान हो जाता है। केवल, मनुष्य जन्म देवी कार्य करना है। आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। मनुष्य को अब ज्ञान हो जाता है। कि, वो मनुष्य नहीं एक शरीर भी नहीं है। मनुष्य को जान होता है। संयम एक आत्मा का परमात्मा अंश  है। मनुष्य को देवी ब्रह्मज्ञान होता है। मनुष्य को यह जान होता है। संयम एक आत्मा है। मनुष्य का जीवन महात्मा होता है। एक ज्ञान का प्रकाश जा जाता है। मनुष्य का जीवन ज्ञान से भर जाता है। संयम को आत्मा के रूप में देखता है। आत्मा को परमात्मा के रूप पा लेता है। मनुष्य जीवन भक्ति से भर जाता है।  मनुष्य का जीवन भक्ति से भरा होता है। मनुष्य जन्म देवी कार्य में सफल हो जाता है। मनुष्य का उद्देश्य जीवनकार्य को पाके धन्य होता है। मनुष्य जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है। मनुष्य जन्म देवी कार्य करने हुआ था। मनुष्य अपने जीवन में भक्ति के मार्ग अपनी देवी कार्य को ब्रह्मज्ञान से पा लेता है। ज्ञान से मनुष्य आत्मा को शांति प्रदान हो जाता है।  मनुष्य का जीवन अनमोल रत्न हो जाता है। मनुष्य ज्ञान से संसार में ज्ञान रूपी तेज पा लेता है। जीवन जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। मोहमाया अंधकार से मुक्त हो जाता है। ज्ञानी पुरुष जीवन के प्रत्येक क्षण ज्ञान रूपी तेज से जीवन जीता है। मनुष्य ज्ञान को सबसे पहले रखता है। जीवन को प्रभुमय बनता है। मनुष्य को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होने के बाद प्रत्येक क्षण परमात्मा की चिंतन करता रहता है। सत्संग , सेवा और स्मरण करता रहता है। मनुष्य भक्ति से भरा जीवन जीता है।  मनुष्य को ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने के बाद ज्ञान को जीवन में लाने के लिए भक्ति की जरूरी होती है। मनुष्य जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आत्मा, परमात्मा को जान लेता है। संयम को आत्मा के रूप जान लेता है। जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है। 


      मनुष्य को ज्ञान हो जाता है। संसार मिथ्या है। जीवन में अयोग्य कार्य करना मोहमाया अंधकार में जीवन जीना अपनी जरूरतों को पाना अनमोल जीवन को नष्ट करना ।  मनुष्य को ज्ञान होता है। आयु में निधन देह होता है। आत्मा की मुत्यु नहीं होती आत्मा अमर है। देह का नाश होता है। मनुष्य जीवन में भक्ति के मार्ग ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करता है। ब्रह्मज्ञान से मनुष्य आत्मा को जान लेता है। वो, शरीर नहीं केवल आत्मा हैं। आत्मा के रूप में परमात्मा का साक्षात्कार दर्शन होता है। कि, वो परमात्मा का अंश है। एक आत्मा!



       मनुष्य के अंतिम समय जब मनुष्य देह से प्राण त्याग ते समय ब्रह्मज्ञान का चिंतन करता है। परमात्मा का ध्यान करते स्मरण करता है। स्मरण करते हुए प्राण त्याग देता है। मोक्ष धाम, परमात्मा के सरण में चला जाता है। परमात्मा, आत्मा को निराकार रूप में छमा लेता है। 

उसी क्षण  मोक्ष का द्वार खुल जाता है। आत्मा का मोक्ष प्राप्त होता है।


अनुक्रणिका 14, परमात्मा कोन है केसा ओर कहा: / जीवन की अनमोल विचार

14.परमात्मा कोन है केसा ओर कहा:



                                     

       हम चाहते है कि, आप को शरुआत से लेके अंत तक का ज्ञान प्राप्त हो। आप अपने जीवन को सफल बनाएं। सत्य का मार्ग जीवन कार्य बहुत से लोको को लगता है। प्रकृति की सर्जन केसे हुआ होगा। आखिर में केसे किया होगा। सर्जनहार कहा है। कोण है।  जब संसार की रचना नहीं हुआ। कुछ भी जीव मौजूद नहीं था। ब्रह्मांड की रचना नहीं था। तब सिर्फ निराकार रूप में शक्ति मौजूद थी। एक पल आप सोच के देखे अनुमान करे कि, ब्रह्मांड में अंदर के खंड मौजूद नहीं है। स्थूल लोक, सूक्ष्म लोक, दृश्य लोक तब भी एक ही शक्ति मौजूद है, निराकार रूप है। निराकार शक्ति अनंत काल से मौजूद है। जिस का कोई अंत है। आज भी इसी रूप में है। कल भी इसी रूप में था। जब यह संसार नष्ट हो जाएगा। तब भी इसी निराकार रूप में मौजूद रहेगा। 


       जरा सोचिए , जब संसार का रचना नहीं हुआ। तब भी निराकार रूप में शक्ति मौजूद थी। आज प्रकृति की सर्जन हुआ है। । प्रकृति ही सर्जनहार है। निराकार रूप परमपिता परमात्मा है। साकार रूप परमात्मा का परमात्मा है। सब के पिता है। हम उन के संतान है।निराकार जिस का कोई आकर नहीं होता। जिस का कोई अंत नहीं। जिस का जन्म नहीं होता। मुत्यु भी नहीं होती। जिस का कोई आकर ,रूप ,रंग नहीं होता।  निराकार रूप अविनाशी परमात्मा है। हवा सुखा नहीं सकती । नजर उसे निर्बल नहीं कर सकती। पानी भीना नहीं सकती। अग्नि उसे जला नहीं सकती। तलवार से काटा जा नहीं सकता। स्पर्श किया नहीं जाता। निराकार रूप अविनाशी परमात्मा पत्येक वस्तु में मौजूद है। निराकार शक्ति ही प्रकृति की सर्जनहार शक्ति प्रकृति है। निराकार रूप में ही समग्र ब्रह्मांड समाया है। निराकार में प्रत्येक वस्तु वाश करती है। प्रकृति की सर्जन में शक्ति मौजूद है। जब निराकार ही प्रकृति है। निराकार के बिना कुछ भी नहीं। प्रकृति की सर्जन समग्र संसार । सर्जन में प्रत्येक वस्तु नाशवंत है। शाश्वत अनंत काल तक शक्ति निराकार रूप अविनाशी है। निराकार सर्व परी है। अनंत काल से मौजूद एक शक्ति एक परमात्मा एक जगत गुरु एक ही एक समग्र प्रकृति निराकार में समाई है।  निराकार के शिवा इस संसार में कुछ भी नहीं। निराकार एक विशाल रूप है। जिस में सभी देव मौजूद है, साकार रूपी परमात्मा। सब से बड़ा निराकार रूप है। सभी देवता उने पूजते है। सब का मालिक निराकार शक्तिओ का शक्ति महाशक्ति है। निराकार रूप दिव्यशक्ती निराकार परमात्मा एक विशाल रूप जिस में प्रत्येक जीव समाया है। ब्रह्मांड भी मालिक के भीतर समाया है। सब एक ही मालिक के भीतर समाए है। निराकार रूप अविनाशी परमात्मा है। निराकार रूप अदृश्य परमात्मा एक विशाल रूप अदृश्य शक्ति है। निराकार परमात्मा से कोई दूसरी शक्ति नहीं। निराकार परमात्मा की मर्ज से ही साकार रूप जन्म मनुष्य अवतार है । साकार रूपी परमात्मा धरा पे जन्म निराकार की मर्जी होती है। मनुष्य आदिकाल से साकार रूप को जान पाए नहीं । निराकार रूप अविनाशी परमात्मा साक्षात रूप साकार भगवान धरा पे आते है।  साकार रूप एक मनुष्य रूप में किसी भी परिवार में जन्म लेता है। 


       मानव कल्याण ,धर्म पूर्ण स्थापना और उधार के लिए साकार रूप जन्म होता ही रहता है। लेकिन मनुष्य इस रूप से अवंचित होते है।  निराकार रूप और साकार रूप जब निराकार परमात्मा आदेश का पालन करते है। साकार रूप परमात्मा धरती पर जन्म लेता है। फिर भी निराकार रूप अविनाशी परमात्मा की भक्ति साकार रूपी परमात्मा करते है।  निराकार परमात्मा को जानना मुश्किल ही नहीं है। साकार रूपी परमात्मा सतगुरु के रूप में ज्ञान की ज्योत जलाती है।



अनुक्रणिका 13, आत्मा का रहस्य : /जीवन की अनमोल विचार

13.आत्मा का रहस्य :


                                    

      ज्ञानी महापुरुष जानते है। आत्मा और शरीर का संबध कि, मनुष्य शरीर नहीं है। केवल , आत्मा है।


     मनुष्य को ब्रह्मज्ञान का प्राप्त होता है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ज्ञान में मनुष्य को परमात्मा का साक्षात् दर्शन होता है। ईश्वरीय ज्ञान मनुष्य को आत्मा को जान लेता है। कि, वो शरीर नहीं केवल एक आत्मा है।

 परमात्मा (परम+आत्मा) पुरुष तथा प्रकृति में वाश किया। दो आत्म का मेल परमात्मा निराकार रूप अविनाशी परमात्मा आत्मा और परमात्मा एक हो जाना मोक्ष प्राप्ति होती है।  जब परमब्रह्म का बटवारा हुआ। परमात्मा पुरुष तथा प्रकृति में वाश किया। उने पूर्ण परमब्रह्म में मिलन होना था। तब मोहमाया तथा अंधकारने आत्मा को गेर लिया। 


       आत्मा परमात्मा का अंश है। आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। आत्मा जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना है। आत्मा को मोक्ष प्राप्त करना है। जन्म मरणना चक्र दूर करने दिव्य देह की जरूर होती है। आत्मा को मोक्ष प्राप्त के लिए मानव देह सर्व उत्तम है।  पुरुष तथा प्रकृति में वाश करने वाले जीव मोक्ष प्राप्ति के लिए जन्म - मरण के चक्र काट रहे होते हैं। प्रत्येक जन्म में बड़ा कष्ट उठाता है। जन्म मनुष्य अवतार मुक्ति के लिए हुए है। आत्मा परमात्मा का अंश है आत्मा को ध्येय, उद्देश्य जीवनकार्य मुक्ति पाने का उधार करना है। अपने आत्मा को परमात्मा के रूप में पाना ही जीवनकार्य है। आत्मा एक अदृश्य ऊर्जा है। हवा सुखा नहीं सकती, पानी भिना नहीं सकती, अग्नि जला नहीं सकती, अस्त्र शस्त्र से मारा नहीं जा सकता।  आत्मा अमर है। आत्मा का कोई अंत नहीं होता। आत्मा एक अंश है। आत्मा को जानना कठिन ही नहीं। 


      आत्मा का रूप परमात्मा का अंश परमब्रह्म का बटवारा हुआ आत्मा प्रत्येक देह को धारण करता है। तब तक जब आत्मा को मोक्ष ना मिली हो। आत्मा को शांति प्रदान आत्मा को मोक्ष प्राप्ति होती है। आत्मा अनेक जन्म मरण में कष्ट मिलता रहता है। संयम आत्मा को जानना ही मोक्ष  आत्मा शरीर में रहकर भी अमर होता है। आत्मा का जन्म और मूत्यू ही नहीं होती है। आत्मा देह को बदलता रहता है। आत्मा अमर है। शरीर का नाश किया जा सकता है। किन्तु , आत्मा नाश नहीं किया जाता। आत्मा सर्व परी अविनाशी है। आत्मा शरीर में रहकर भी अमर है। 



अनुक्रणिका 12, मनुष्य जीवन का धर्म / जीवन की अनमोल विचार

12.मनुष्य जीवन का धर्म


                               

   मनुष्य जीवन में  कर्म ओर भक्ति के माध्यम से अपने कर्तव्य को निभाते है। जब मनुष्य अपने कर्तव्य को जानते है ओर जीवन में कार्य करता रहता है।  तब मनुष्य जीवन में धर्म करता रहता है। सब को अच्छा व्यवहार करना , स्वभाव ओर नम्र करना , करुणा से भरा जीवन जीता। सब के प्रति प्रेम भाव होना। प्रत्येक कार्य को अपना कर्तव्य समझ के कार्य करना ।  दूसरों को खुशी देता हो। किसी भी व्यक्ति से निंदा ना हो , नफरत ओर वेर की जगह ना हो।  


       मनुष्य का जीवन दया , करूणा, प्रेम से भरा हो चाहिए। दूसरे मनुष्य प्रति प्रेम भाव हो । सब को एक मान दे। सब को सामान माने । मनुष्य प्रत्येक मनुष्य को एक ही पिता के संतान माने।  ज्ञानी महापुरुष जानते है। जब मनुष्य को दुःख , पीड़ा दिया जाए तो, मनुष्य को दुःख नहीं । केवल, आत्मा को पीड़ा दिया जाता है।जब मनुष्य को दुःख पीड़ा दिया जाता है। तब आत्मा को पीड़ा होती हैं।जब आत्मा को पीड़ा होती है। तो, वास्तव मैं परमात्मा को दुःख, पीड़ा होती है।




ज्ञानी महापुरुष जानते है

अगर जिभा कट जाएतो, समग्र शरीर को पीड़ा होती है।

उसी तरह , संसार में एक भी मनुष्य पीड़ित है।

तब तक वास्तव में, एक भी मनुष्य का सुख सपूर्ण नहीं।  यह, देखकर मनुष्य के भीतर करुणा भाग जग जाए । तब वास्तव में उसे धर्म कहते है।


      जिस मार्ग पे चल के आत्मा को जान लेता है। आत्मा के रूप में संयम को जान लेता है। आत्मा के रूप में परमात्मा को जान लेता है। परमात्मा के अंश  को जान लेता है। संयम एक आत्मा है। एक परमात्मा का अंश , आत्मा है। परमात्मा को आत्मा के रूप में देखता है। स्मरण होता है, यह परमात्मा ही संसार है। 

यह ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है। 

तब उने धर्म कहा जाता है।



श्रीमद् भागवत गीता /महाभारत ज्ञान सार ऑडियो/devine knowlegde by lord Sri Krishna

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