devineknowledge

blog websites https://devineknowledge2.blogspot.com me Devine knowledge ke bare me jankari milti rahegi. Blog me devine knowlegde ke avala digital , application services, online earn money, video, image or bahut kuch janakari di jayegi.

Srinkearn

Srinkearn

Showing posts with label Devine knowledge. Show all posts
Showing posts with label Devine knowledge. Show all posts

Tuesday, July 21, 2020

अनुक्रणिका 16, क्षमा याचना : / जीवन की अनमोल विचार

16.क्षमा याचना : 



                                 

       ईश्वरीय ज्ञान के तरफ से आप सभी को धन्यवाद करते है।   इस पाठ्य में मनुष्य जीवन की सारी बाते सविस्तार से वर्णन किया गया है। मनुष्य जीवन में जन्म से लेकर मरण/ मृत्यु  तक का सफर दिया गया है। मनुष्य जीवन में देवी कार्य के बारे में बताया गया है। मनुष्य देह कार्य से मनुष्य जीवन कार्य तक का वर्णन दिया गया है।


       आत्मा का रहस्य ओर  आत्मा का कार्य के बारे में बताया है।  आत्मा किया है, आत्मा का उद्देश्य, लक्ष्य ओर जीवन कार्य  किया है। आत्मा ओर मनुष्य जीवन का रहस्य किया है। परमपिता परमात्मा के बारे में भी सविस्तर से  वर्णन किया है। आत्मा ओर परमात्मा का मिलन का सार किया गया है। मनुष्य जन्म अवतार आत्मा का मोक्ष / मुक्ति  का मार्ग बताया गया है। 



      ईश्वरीय ज्ञान में किसी भी धर्म का विरोध नहीं किया गया है।  इस पाठ्य में वर्णन किया गया विचार सकारात्मक रूप में है। सत्य के आधारिक विचार बताया गया है।  फिर भी अयोग्य विचार दिया गया हो तो, क्षमा याचना करते है। ईश्वरीय ज्ञान आप सभी को सिर्फ ज्ञान की प्रेरणा देने का मार्ग बताया गया।   


       ईश्वरीय ज्ञान  सिर्फ आप से संदेश का मार्ग है।  आप के विरूद्ध कार्यवाही से ईश्वरीय ज्ञान जवाबदारी नहीं लेता है।  आप पढ़ना ही सीमित रखे।

                 


                   The end

*†*****†*******†******†*******†*****†*

अनुक्रणिका 15, मनुष्य आत्मा का मुक्ति योग : /जीवन की अनमोल विचार

15.मनुष्य आत्मा का मुक्ति योग :


                    

       मनुष्य को ब्रह्मज्ञान का प्राप्त होता है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ज्ञान में मनुष्य को परमात्मा का साक्षात् दर्शन होता है। ईश्वरीय ज्ञान मनुष्य को आत्मा को जान लेता है। कि, वो शरीर नहीं केवल एक आत्मा है।  ईश्वरीय ज्ञान से मनुष्य को आत्मा का कार्य उद्देश्य जीवनकार्य के बारे में पता हो जाता है। कि, आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। आत्मा को मोक्ष प्राप्त करना है। ईश्वरी ज्ञान से मनुष्य जन्म मरण का चक्र को ब्रह्मज्ञान से जान लेता है। कि, मनुष्य केवल साधन है। आत्मा को परमात्मा रूप जान लेता है। आत्मा परमात्मा का एक अंश है।  मनुष्य को जान होता है। आत्मा और परमात्मा के रूप केवल, मोक्ष प्राप्त करने हेतु मनुष्य जन्म हुआ है। मनुष्य आत्मा और परमात्मा बीच का अंतर जान लेता है। आत्मा का कार्य मोक्ष प्राप्त करना है। परमात्मा अपने अंश को सही दिशा दिखता है। मनुष्य जन्म से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। 


      मनुष्य को ज्ञान होता है। कि , मनुष्य को जन्म - मरण के चक्र और लख 84 फेरे से मुक्ति पाना है। आत्मा को निराकार परमात्मा में एक होना है।  मनुष्य को ब्रह्मज्ञान से जीवनकार्य ज्ञान हो जाता है। केवल, मनुष्य जन्म देवी कार्य करना है। आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। मनुष्य को अब ज्ञान हो जाता है। कि, वो मनुष्य नहीं एक शरीर भी नहीं है। मनुष्य को जान होता है। संयम एक आत्मा का परमात्मा अंश  है। मनुष्य को देवी ब्रह्मज्ञान होता है। मनुष्य को यह जान होता है। संयम एक आत्मा है। मनुष्य का जीवन महात्मा होता है। एक ज्ञान का प्रकाश जा जाता है। मनुष्य का जीवन ज्ञान से भर जाता है। संयम को आत्मा के रूप में देखता है। आत्मा को परमात्मा के रूप पा लेता है। मनुष्य जीवन भक्ति से भर जाता है।  मनुष्य का जीवन भक्ति से भरा होता है। मनुष्य जन्म देवी कार्य में सफल हो जाता है। मनुष्य का उद्देश्य जीवनकार्य को पाके धन्य होता है। मनुष्य जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है। मनुष्य जन्म देवी कार्य करने हुआ था। मनुष्य अपने जीवन में भक्ति के मार्ग अपनी देवी कार्य को ब्रह्मज्ञान से पा लेता है। ज्ञान से मनुष्य आत्मा को शांति प्रदान हो जाता है।  मनुष्य का जीवन अनमोल रत्न हो जाता है। मनुष्य ज्ञान से संसार में ज्ञान रूपी तेज पा लेता है। जीवन जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। मोहमाया अंधकार से मुक्त हो जाता है। ज्ञानी पुरुष जीवन के प्रत्येक क्षण ज्ञान रूपी तेज से जीवन जीता है। मनुष्य ज्ञान को सबसे पहले रखता है। जीवन को प्रभुमय बनता है। मनुष्य को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होने के बाद प्रत्येक क्षण परमात्मा की चिंतन करता रहता है। सत्संग , सेवा और स्मरण करता रहता है। मनुष्य भक्ति से भरा जीवन जीता है।  मनुष्य को ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने के बाद ज्ञान को जीवन में लाने के लिए भक्ति की जरूरी होती है। मनुष्य जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आत्मा, परमात्मा को जान लेता है। संयम को आत्मा के रूप जान लेता है। जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है। 


      मनुष्य को ज्ञान हो जाता है। संसार मिथ्या है। जीवन में अयोग्य कार्य करना मोहमाया अंधकार में जीवन जीना अपनी जरूरतों को पाना अनमोल जीवन को नष्ट करना ।  मनुष्य को ज्ञान होता है। आयु में निधन देह होता है। आत्मा की मुत्यु नहीं होती आत्मा अमर है। देह का नाश होता है। मनुष्य जीवन में भक्ति के मार्ग ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करता है। ब्रह्मज्ञान से मनुष्य आत्मा को जान लेता है। वो, शरीर नहीं केवल आत्मा हैं। आत्मा के रूप में परमात्मा का साक्षात्कार दर्शन होता है। कि, वो परमात्मा का अंश है। एक आत्मा!



       मनुष्य के अंतिम समय जब मनुष्य देह से प्राण त्याग ते समय ब्रह्मज्ञान का चिंतन करता है। परमात्मा का ध्यान करते स्मरण करता है। स्मरण करते हुए प्राण त्याग देता है। मोक्ष धाम, परमात्मा के सरण में चला जाता है। परमात्मा, आत्मा को निराकार रूप में छमा लेता है। 

उसी क्षण  मोक्ष का द्वार खुल जाता है। आत्मा का मोक्ष प्राप्त होता है।


अनुक्रणिका 14, परमात्मा कोन है केसा ओर कहा: / जीवन की अनमोल विचार

14.परमात्मा कोन है केसा ओर कहा:



                                     

       हम चाहते है कि, आप को शरुआत से लेके अंत तक का ज्ञान प्राप्त हो। आप अपने जीवन को सफल बनाएं। सत्य का मार्ग जीवन कार्य बहुत से लोको को लगता है। प्रकृति की सर्जन केसे हुआ होगा। आखिर में केसे किया होगा। सर्जनहार कहा है। कोण है।  जब संसार की रचना नहीं हुआ। कुछ भी जीव मौजूद नहीं था। ब्रह्मांड की रचना नहीं था। तब सिर्फ निराकार रूप में शक्ति मौजूद थी। एक पल आप सोच के देखे अनुमान करे कि, ब्रह्मांड में अंदर के खंड मौजूद नहीं है। स्थूल लोक, सूक्ष्म लोक, दृश्य लोक तब भी एक ही शक्ति मौजूद है, निराकार रूप है। निराकार शक्ति अनंत काल से मौजूद है। जिस का कोई अंत है। आज भी इसी रूप में है। कल भी इसी रूप में था। जब यह संसार नष्ट हो जाएगा। तब भी इसी निराकार रूप में मौजूद रहेगा। 


       जरा सोचिए , जब संसार का रचना नहीं हुआ। तब भी निराकार रूप में शक्ति मौजूद थी। आज प्रकृति की सर्जन हुआ है। । प्रकृति ही सर्जनहार है। निराकार रूप परमपिता परमात्मा है। साकार रूप परमात्मा का परमात्मा है। सब के पिता है। हम उन के संतान है।निराकार जिस का कोई आकर नहीं होता। जिस का कोई अंत नहीं। जिस का जन्म नहीं होता। मुत्यु भी नहीं होती। जिस का कोई आकर ,रूप ,रंग नहीं होता।  निराकार रूप अविनाशी परमात्मा है। हवा सुखा नहीं सकती । नजर उसे निर्बल नहीं कर सकती। पानी भीना नहीं सकती। अग्नि उसे जला नहीं सकती। तलवार से काटा जा नहीं सकता। स्पर्श किया नहीं जाता। निराकार रूप अविनाशी परमात्मा पत्येक वस्तु में मौजूद है। निराकार शक्ति ही प्रकृति की सर्जनहार शक्ति प्रकृति है। निराकार रूप में ही समग्र ब्रह्मांड समाया है। निराकार में प्रत्येक वस्तु वाश करती है। प्रकृति की सर्जन में शक्ति मौजूद है। जब निराकार ही प्रकृति है। निराकार के बिना कुछ भी नहीं। प्रकृति की सर्जन समग्र संसार । सर्जन में प्रत्येक वस्तु नाशवंत है। शाश्वत अनंत काल तक शक्ति निराकार रूप अविनाशी है। निराकार सर्व परी है। अनंत काल से मौजूद एक शक्ति एक परमात्मा एक जगत गुरु एक ही एक समग्र प्रकृति निराकार में समाई है।  निराकार के शिवा इस संसार में कुछ भी नहीं। निराकार एक विशाल रूप है। जिस में सभी देव मौजूद है, साकार रूपी परमात्मा। सब से बड़ा निराकार रूप है। सभी देवता उने पूजते है। सब का मालिक निराकार शक्तिओ का शक्ति महाशक्ति है। निराकार रूप दिव्यशक्ती निराकार परमात्मा एक विशाल रूप जिस में प्रत्येक जीव समाया है। ब्रह्मांड भी मालिक के भीतर समाया है। सब एक ही मालिक के भीतर समाए है। निराकार रूप अविनाशी परमात्मा है। निराकार रूप अदृश्य परमात्मा एक विशाल रूप अदृश्य शक्ति है। निराकार परमात्मा से कोई दूसरी शक्ति नहीं। निराकार परमात्मा की मर्ज से ही साकार रूप जन्म मनुष्य अवतार है । साकार रूपी परमात्मा धरा पे जन्म निराकार की मर्जी होती है। मनुष्य आदिकाल से साकार रूप को जान पाए नहीं । निराकार रूप अविनाशी परमात्मा साक्षात रूप साकार भगवान धरा पे आते है।  साकार रूप एक मनुष्य रूप में किसी भी परिवार में जन्म लेता है। 


       मानव कल्याण ,धर्म पूर्ण स्थापना और उधार के लिए साकार रूप जन्म होता ही रहता है। लेकिन मनुष्य इस रूप से अवंचित होते है।  निराकार रूप और साकार रूप जब निराकार परमात्मा आदेश का पालन करते है। साकार रूप परमात्मा धरती पर जन्म लेता है। फिर भी निराकार रूप अविनाशी परमात्मा की भक्ति साकार रूपी परमात्मा करते है।  निराकार परमात्मा को जानना मुश्किल ही नहीं है। साकार रूपी परमात्मा सतगुरु के रूप में ज्ञान की ज्योत जलाती है।



अनुक्रणिका 13, आत्मा का रहस्य : /जीवन की अनमोल विचार

13.आत्मा का रहस्य :


                                    

      ज्ञानी महापुरुष जानते है। आत्मा और शरीर का संबध कि, मनुष्य शरीर नहीं है। केवल , आत्मा है।


     मनुष्य को ब्रह्मज्ञान का प्राप्त होता है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ज्ञान में मनुष्य को परमात्मा का साक्षात् दर्शन होता है। ईश्वरीय ज्ञान मनुष्य को आत्मा को जान लेता है। कि, वो शरीर नहीं केवल एक आत्मा है।

 परमात्मा (परम+आत्मा) पुरुष तथा प्रकृति में वाश किया। दो आत्म का मेल परमात्मा निराकार रूप अविनाशी परमात्मा आत्मा और परमात्मा एक हो जाना मोक्ष प्राप्ति होती है।  जब परमब्रह्म का बटवारा हुआ। परमात्मा पुरुष तथा प्रकृति में वाश किया। उने पूर्ण परमब्रह्म में मिलन होना था। तब मोहमाया तथा अंधकारने आत्मा को गेर लिया। 


       आत्मा परमात्मा का अंश है। आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है। आत्मा जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना है। आत्मा को मोक्ष प्राप्त करना है। जन्म मरणना चक्र दूर करने दिव्य देह की जरूर होती है। आत्मा को मोक्ष प्राप्त के लिए मानव देह सर्व उत्तम है।  पुरुष तथा प्रकृति में वाश करने वाले जीव मोक्ष प्राप्ति के लिए जन्म - मरण के चक्र काट रहे होते हैं। प्रत्येक जन्म में बड़ा कष्ट उठाता है। जन्म मनुष्य अवतार मुक्ति के लिए हुए है। आत्मा परमात्मा का अंश है आत्मा को ध्येय, उद्देश्य जीवनकार्य मुक्ति पाने का उधार करना है। अपने आत्मा को परमात्मा के रूप में पाना ही जीवनकार्य है। आत्मा एक अदृश्य ऊर्जा है। हवा सुखा नहीं सकती, पानी भिना नहीं सकती, अग्नि जला नहीं सकती, अस्त्र शस्त्र से मारा नहीं जा सकता।  आत्मा अमर है। आत्मा का कोई अंत नहीं होता। आत्मा एक अंश है। आत्मा को जानना कठिन ही नहीं। 


      आत्मा का रूप परमात्मा का अंश परमब्रह्म का बटवारा हुआ आत्मा प्रत्येक देह को धारण करता है। तब तक जब आत्मा को मोक्ष ना मिली हो। आत्मा को शांति प्रदान आत्मा को मोक्ष प्राप्ति होती है। आत्मा अनेक जन्म मरण में कष्ट मिलता रहता है। संयम आत्मा को जानना ही मोक्ष  आत्मा शरीर में रहकर भी अमर होता है। आत्मा का जन्म और मूत्यू ही नहीं होती है। आत्मा देह को बदलता रहता है। आत्मा अमर है। शरीर का नाश किया जा सकता है। किन्तु , आत्मा नाश नहीं किया जाता। आत्मा सर्व परी अविनाशी है। आत्मा शरीर में रहकर भी अमर है। 



अनुक्रणिका 12, मनुष्य जीवन का धर्म / जीवन की अनमोल विचार

12.मनुष्य जीवन का धर्म


                               

   मनुष्य जीवन में  कर्म ओर भक्ति के माध्यम से अपने कर्तव्य को निभाते है। जब मनुष्य अपने कर्तव्य को जानते है ओर जीवन में कार्य करता रहता है।  तब मनुष्य जीवन में धर्म करता रहता है। सब को अच्छा व्यवहार करना , स्वभाव ओर नम्र करना , करुणा से भरा जीवन जीता। सब के प्रति प्रेम भाव होना। प्रत्येक कार्य को अपना कर्तव्य समझ के कार्य करना ।  दूसरों को खुशी देता हो। किसी भी व्यक्ति से निंदा ना हो , नफरत ओर वेर की जगह ना हो।  


       मनुष्य का जीवन दया , करूणा, प्रेम से भरा हो चाहिए। दूसरे मनुष्य प्रति प्रेम भाव हो । सब को एक मान दे। सब को सामान माने । मनुष्य प्रत्येक मनुष्य को एक ही पिता के संतान माने।  ज्ञानी महापुरुष जानते है। जब मनुष्य को दुःख , पीड़ा दिया जाए तो, मनुष्य को दुःख नहीं । केवल, आत्मा को पीड़ा दिया जाता है।जब मनुष्य को दुःख पीड़ा दिया जाता है। तब आत्मा को पीड़ा होती हैं।जब आत्मा को पीड़ा होती है। तो, वास्तव मैं परमात्मा को दुःख, पीड़ा होती है।




ज्ञानी महापुरुष जानते है

अगर जिभा कट जाएतो, समग्र शरीर को पीड़ा होती है।

उसी तरह , संसार में एक भी मनुष्य पीड़ित है।

तब तक वास्तव में, एक भी मनुष्य का सुख सपूर्ण नहीं।  यह, देखकर मनुष्य के भीतर करुणा भाग जग जाए । तब वास्तव में उसे धर्म कहते है।


      जिस मार्ग पे चल के आत्मा को जान लेता है। आत्मा के रूप में संयम को जान लेता है। आत्मा के रूप में परमात्मा को जान लेता है। परमात्मा के अंश  को जान लेता है। संयम एक आत्मा है। एक परमात्मा का अंश , आत्मा है। परमात्मा को आत्मा के रूप में देखता है। स्मरण होता है, यह परमात्मा ही संसार है। 

यह ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है। 

तब उने धर्म कहा जाता है।



अनुक्रणिका 11, मनुष्य जीवन में ज्ञान योग / जीवन की अनमोल विचार

11.मनुष्य जीवन में ज्ञान योग 


                                 

       मनुष्य के जीवन में ज्ञान की प्रकाश होना ही चाहिए। मनुष्य अपने आप को ज्ञान से तेज होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में ज्ञान को प्राप्त करना चाहता है।  जीवन में ज्ञान रूपी अंधकार को दूर करना चाहता है। मिथ्या जीवन को नष्ट करना चाहता है। मनुष्य अपने जीवनकाल में प्रत्येक ज्ञान का भंडार प्राप्त करता है। मनुष्य जीवन में ज्ञान को प्राप्त करता ही रहता है। ज्ञान  मनुष्य जीवन में बदलाव लाता है। ज्ञान से मनुष्य जीवन में किसी भी कार्य को कर लेता है। ज्ञान में उत्तम को समझना ही सच्चा रास्ता है। जन्म से मुत्यु तक का सफ़र में मनुष्य बहुत अपने आप को ज्ञान की प्राप्ति कर लेता है।  मनुष्य जीवन जो भी कार्य करता है। उस सभी में ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान की बिना मनुष्य कुछ भी नहीं कर पाता है। 


        हम  ब्रह्म ज्ञान की  बात कर रहे है। मनुष्य जीवन ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति  ओर प्रकाश होना चाहिए। ब्रह्म ज्ञान यानी आत्मा ओर परमात्मा की प्राप्ति करना ।  मनुष्य अपने अच्छे कर्म से जीवन को सफल बनता है। मनुष्य अपने जीवन में कर्मयोग से भक्तियोग  ओर भक्तियोग से ज्ञानयोग की प्राप्ति करता हैं। मनुष्य अपने जीवन में कर्म करता रहता है। भक्ति के मार्ग से मनुष्य अपने आप को ज्ञानयोग का द्वार खुल जाता है। मनुष्य जन्म ओर मरण का नाता जान लेता है।। ज्ञान की प्राप्ति से  आत्मा को जान लेता है।। जब मनुष्य आत्मा को जनता है तब संयम परमात्मा का साक्षात्कार दर्शन हो जाता है। ज्ञान की प्राप्ति कर्म , भक्ति ओर ज्ञान से होती है।


       परमपिता परमात्मा को प्राप्त करना ही ज्ञानयोग है। अपने आत्मा को जानना ही ज्ञान है।  संयम को आत्मा के रूप में परमात्मा देखना ही ज्ञान है। आत्मा ओर परमात्मा का मिलन ही ज्ञान है।  जीवन के सत्य ओर धर्म को समझना ही ज्ञान योग है। ज्ञान का दीप परमपिता परमात्मा है, ज्ञान को प्राप्त करना ही धर्म है।  परमात्मा को जन्म ही मनुष्य जीवन का जीवन कार्य ओर कर्तव्य है।। उद्देश्य, लक्ष्य ओर कर्तव्य मनुष्य को अपने जीवन में ज्ञान को जानना है।

अनुक्रणिका 10, मनुष्य जीवन में भक्ति योग / जीवन की अनमोल विचार

10.मनुष्य जीवन में  भक्ति योग



                                    

         भक्ति का मनुष्य जीवन अहम भाग है।। भक्ति से ही मनुष्य जीवन में बदलाव आता है।।भक्ति का रंग मनुष्य के जीवन में करुणा भाव से रचा रहता है।। भक्ति से मनन प्रसन्न रहता है। भक्ति से मनुष्य के भीतर आस्थाएं बंधे होते है।। अपने भीतर भावनाए होती है।  मनुष्य जीवन में भक्ति ही अपने मनन की शुद्धता को पूर्ण रूप धारण करती है। भक्ति से ही संसार में प्यार होता है। सब से प्यार से रहना पसंद करते है। भक्ति में प्रेम होता है। भक्ति में सत्य ओर धर्म होता है।। भक्ति में इनसान कि इंसानियत होती है।  भक्ति से ही सब मनुष्य में एकता भाव होती है।। भक्ति से ही मनुष्य जीवन में सुख का अनुभव होता है। भक्ति से मनुष्य जन्म अवतार उत्तम मानता है। 


      मनुष्य के लिए बहुत से भक्ति होती है। मनुष्य अलग अलग भक्ति करते है।। मनुष्य अपने मातृ भक्ति , पितृ भक्ति, भाई भक्ति , बहन भक्ति, मित्र भक्ति सभी तरह की भक्ति होती है।।  लेकिन मनुष्य के लिए उत्तम भक्ति परमात्मा की भक्ति है। परमात्मा की भक्ति ही देवी भक्ति है। ओर सेवा में सबसे उत्तम प्रभु सेवा है। परमात्मा की भक्ति ओर सेवा करे। जीवन में मनुष्य प्रभुमय ओर भक्ति से भरा जीवन बन जायेगा। 


        मनुष्य के जीवन में भक्ति को पूर्ण रूप से धारण अपने कर्म से आता है। मनुष्य जीवन में प्रभु के बिना मनुष्य भक्ति भी नहीं कर पाता है। मनुष्य के जैसे कर्म होते है। मनुष्य ठीक उसी तरह अपने जीवन में  रहता है। मनुष्य के भीतर प्रेम भाव नहीं हो तो मनुष्य भक्ति को पा नहीं सकते हैं । भक्ति अच्छे कर्म करने वाले को भी प्राप्त होता है।  


      मनुष्य में अगर नास्तिक  कर्म से बंधा हो तो, मनुष्य अपने जीवन में भक्ति का द्वार बंद रहता है। मिथ्या जीवन जीता रहता है।  भक्ति से दूर रहते है। मनुष्य के जीवन में भक्ति के लिए , संपूर्ण रूप से प्रेम भाव , करुणा , दया,  सत्य, धर्म ओर कर्म से बंधे होने चाहिए। मनुष्य अपने आप में परमात्मा की स्मरण करता होना चाहिए। परमात्मा की आराधना करना चाहिए।  अपने जीवन में प्रभु के प्रति जिज्ञासा होना चाहिए। मनुष्य का मनन ओर विचार करुणा से भरा होना चाहिए। इसी मनुष्य के अंतर मनन से भक्ति का द्वार खुल जाता है। मनुष्य जीवन में भक्ति का द्वार तब खुलता है। जब मनुष्य को प्रत्येक सन स्मरण करता है जिज्ञासा करता है। अपने  मनन में प्रभु प्रति प्रेम भाव ओर आकर्षित करता है। तब मनुष्य के जीवन में भक्ति का द्वार हमेशा के लिए खुलता है।  



A:सच्ची भक्ति:


     भक्ति सच्चे मनन की आराधना है।  अपने प्रभु में समर्पण है। अपने आप को समर्पण करता है। कुछ भी निर्णय नहीं लेता है। जिसे जो आदेश मिलता है वह ही करता है। भक्ति भागवत परमात्मा का स्मरण है। सच्चे मनन से याद करते हो। स्मरण करते हो। आप अपने आपको प्रभु के चरणों में जीवन समर्पण करते हो।  भक्ति अंतर मन ओर आत्मा से किया जाता है। भक्ति आत्मा ओर परमात्मा का मिलन है।। जो भी कार्य मिलता है। जो भी सेवा मिलता है। किसी भी मनुष्य की मदद करना । आत्मा ओर आत्मा की शुद्धता मिलन एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति सेवा भाव बने प्रभु भक्ति होती है।   यदि ,आप परमात्मा भक्ति करते हो , आप सिर्फ परमात्मा को ही भोग चढ़ना चाहते हो । तो , आप किया करना पसंद करते हो। आप को पाता है, परमात्मा निराकार है। कन कन में है। आप का भोग केसे करेगा।। परमपिता है जगत के पालन हार है। परमात्मा सब कुछ है ओर कुछ भी नहीं।    परमात्मा का अंश आत्मा है, तो, भक्ति प्रभु की ही होती है। 


     जब आप किसी भी भूखे को खाना खिलाते हो। तब आपने संयम परमात्मा को भोग लगाया है।। संयम ने परमात्मा की सेवा की है। सच्ची भक्ति  प्रभु प्रति की जाती है। लेकिन , परमात्मा की सेवा ही सच्ची भक्ति होती है। ओर मनुष्य की सेवा ही परमात्मा की भक्ति होती है।  आप परमात्मा में आराधना करते हो हमेशा चिंतन करते हो। ओर परमात्मा हम सब के पिता है। जगत के पालन हार है। हमारे करता धरता है, तो मनुष्य की सेवा में ही प्रभु की सेवा चूपी है।। ओर  मनुष्य की सच्ची भक्ति भी चुपी है।।


मनुष्य को भक्ति को समझना चाहिए, मिथ्या जीवन से जुड़े नहीं सच्चे भक्ति को समझे ।


अनुक्रणिका 9, पाप ओर पुण्य : /जीवन की अनमोल विचार

9.पाप ओर पुण्य : 


                                  

    मनुष्य अपने जीवन में कर्म करता है ।। कर्म से  आशाएं भी बंधी होती हैं। जीवन में किसी भी कार्य को करने के बाद उस से जुड़ी इच्छाएं होती है। जब किसी कार्य को फल की आशा से कार्य करता है। तब कार्य पूर्ण रूप से कर्म के  रूप में बंध जाता है। जैसे कोई मनुष्य अपने आप को परमात्मा को प्रार्थना करता है।। किसी भी देवता के रूप में प्रार्थना करता है। तब उसी रूप में भक्त जो भी मुरादे होता है।। उन कार्य के रूप में कर्म के रूप में भक्त को मिल जाता है।। 


      जब मनुष्य किसी कार्य को बिना आशाएं बंधे कार्य करता है।  तब कार्य को करने के बाद मनन में कुछ पाने की या प्राप्त करने की आशाएं नहीं होती है। तब  कार्य के रूप में निष्काम कर्म कहा जाता है। मनुष्य के भीतर मनन कि लालसा नहीं होती।। कार्य के बदले किसी तरह को।प्राप्त की आशा नहीं होती है।  मनुष्य अपने आप को कार्य से मुक्त किया है। फल की आशा को पूर्ण रूप से मुक्त किया है। उने सिर्फ कर्म किया है।। कर्म करने के बाद फल की आशा नहीं रही।  तब इसे कार्य को निष्काम कार्य कहलाता है। 


 उसी तरह से अपने जीवन में सभी कार्य को निष्काम कर्म के रूप में करना होता है।  किसी भी कार्य को करना है लेकिन उन से जुड़ी कार्य से आशाएं नहीं बांधनी होती है। मनुष्य जीवन में आशाएं बांधता है तब मनुष्य अपने आप को कार्य के रूप में बांधता है।।  


    जीवन में किसी समय में आप हार जीत , सुख दुःख , पाना खोना , उच्च नीच, अच्छा भुरा , सही गलत सभी तरफ के कार्य  आप जिस तरह मानते जाते है। ठीक ऐसा ही आपके जीवन में असंतोष होगी। मनन ओर विचारो से डूब जायेगे। गलत ओर दुःख सुख में बंधा जीवन होगा।    आप जीवन में को भी सोचते ही विचार करते हो । वोह सब आप को कार्य के रूप में बांधता है।। ओर जैसा कार्य के रूप में है वैसा ही कार्य के रूप में कर्म होगा।।  अकर्म कार्य से आप पाप से बंधे जायेगे। जीवन में सब आप मानते हो तब आप सही , गलत , हर जीत , हत्या अपने में ग्रहण करते है। जब तक आप अपने कार्य में नहीं किसी हार के भागीदार होगे। नहीं आप को जीत का आंनद होगा । नहीं आप  किसी की हत्या कि हो। जब आप सभी कार्य को मुक्त करते हो । तब आप उस कार्य के साथ नहीं बंधते हो।। आप जीत का आनंद नहीं मानते हो। अपने कार्य में जीत को ग्रहण नहीं करते ही। तो आप कर्म से मुक्त हो। अपने मनन में ओर कार्य से जुड़ी आशाएं नहीं होती है।। तब वह कार्य निष्काम कर्म होता है।  ओर मनुष्य के जीवन में पाप ओर पुण्य से बच जाता है। मनुष्य को नहीं पाप का भागीदार होता है । नहीं पुण्य से होता है। मनुष्य निष्काम कर्म करता है। किसी कार्य से नहीं बांधता है।। संयम , कर्म करता है। किसी भी कार्य के रूप में आशाएं नहीं बांधता है। ओर ऐसा, मनुष्य को कर्मयोगी कहते है। ऐसा मनुष्य अपने जीवन में बार बार जीतता है।




अनुक्रणिका 8, मनुष्य जीवन में कर्मयोग :/ जीवन की अनमोल विचार

8.मनुष्य जीवन में कर्मयोग :



                                

     मनुष्य के जीवन में कर्म अहम योगदान होता है। कर्म  मनुष्य करता ही रहता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कर्म की  भूमिका होती ही है। कर्म प्रत्येक जीव जंतु ओर प्राणी करता ही है। कर्म से मनुष्य कभी नहीं भाग सकता है।  आखिर में कर्म किस को कहा जाता है। कर्म के बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त करना होता है। कर्म को जानने की प्रयास करे।   यह , संसार ही कर्म से चलता है। संसार के प्रत्येक मनुष्य कर्म करते करते चलते है। सभी कार्य में कर्म करते है। आम तौर पर एक प्राणी जो हर पल अपने परिवार प्रति कर्म करता है। अपने जीवन का अहम योगदान करता है।  अपने जीवन को कर्म से ज़िन्दगी जीता है। ज़िन्दगी की एक एक पल कर्म करते करते जीवन जीता है। मनुष्य जीवन में कर्म सबसे योगदान है। अपना जीवन का कर्तव्य को निभाता है। सत्य ओर धर्म का पालन करता हैं। 


__आखिर में कर्म किया है, कर्म किसे कहते, कर्म कब होता है, कर्म को केसे जाने , कर्म को केसे करे ?


      कर्म एक कार्य होता है। संसार में प्रत्येक जीव कार्य करता है।। जब जीव जंतु ओर प्राणी आदि कार्य करता है। उन कार्य को कर्म से पहचाना जाता है।  एक मनुष्य ओर संसार का प्रत्येक जीव ओर प्राणी अपने जीवन में किसी वस्तु का कार्य करता है । किसी भी प्राणी का सेवा करता है।। तब मनुष्य यानी प्राणी के प्रति कार्य होता है। ओर उने कार्य के बदले कर्म किया होता है। कर्म कार्य से होता है। मनुष्य के जीवन में एक एक पल अपने जीवन का अहम योगदान कर्म करता रहता है।  


     मनुष्य देह से कर्म को समझते है। संसार में मनुष्य के जीवन में किसी भी तरह का कार्य होता है। मनुष्य उन कार्य को कर्म करता रहता है। मनुष्यों को इतना ही स्मरण होता है कि, वह अपने जीवन में कार्य करता है। वोह  सिर्फ अपना काम के रूप में देखता है। मनुष्य के जीवन में काम का स्थान बनता है। कर्म किया है मनुष्य को स्मरण नहीं होता है। ओर मनुष्य अपने जीवन बहुत से अकर्म कार्य के रूप में करता है। ओर उन कार्य को पूर्ण रूप से मान लेता है। मनुष्य अपने जीवन में जो भी कार्य करता है। ओर जीवन में करता आ रहा है। कुछ भी कार्य जो  मनुष्य देह से करता रहा है। वोह सब कुछ कार्य को कर्म कहते है।।



      मनुष्य जीवन में चलना , बेटना , उठना , काम करना , खाना पीना , सुनना , देखना  आदि कार्य को कर्म कहते है । मनुष्य जो कार्य करता है, सब कार्य कर्म होता है।  जीवन में मनुष्य अच्छा बर्ताव करे किसी को सेवा करे अपने परिवार को खुशियों से भरा रखे सब कार्य कर्म रूप  में बन जाते है। एक प्राणी भी कर्म करता है। कर्म ऐसा है कि, मनुष्य किसी हालत में कर्म करता ही रहता है। कर्म से कोई नहीं बचता है।  लेकिन , मनुष्य अपने जीवन में जैसा जैसा कार्य करेगा वैसा वैसा कार्य के रूप में कर्म होगा। अब मनुष्य के जीवन व्यवहार की बात है, मनुष्य के जैसे स्वभाव होगे। ठीक ऐसे ही जीवन में कार्य करेगे। अपने जीवन भर मनुष्य अच्छा कार्य करेगा। मनुष्य के जीवन में सुबह से लेकर रात्रि तक का सफर में मनुष्य जो भी कार्य करता है। अच्छा हो यह गलत कार्य को रूप में कर्म ही  होता है।।  



अब आप समझ ही गई होगे। कर्म किया है , केसे बनता है। इसीलिए, जीवन में अपने कार्य को पूर्ण रूप से सत्य के मार्ग पे लाए। धर्म का पालन करे । परंपरा  के अनुसार जीवन वतित करे। अपने जीवन कर्तव्य को जाने । जीवन में कर्म करते रहे। 



      मनुष्य अपने जीवन में कर्म करता है ।। कर्म से  आशाएं भी बंधी होती हैं। जीवन में किसी भी कार्य को करने के बाद उस से जुड़ी इच्छाएं होती है। जब किसी कार्य को फल की आशा से कार्य करता है। तब कार्य पूर्ण रूप से कर्म के  रूप में बंध जाता है। जैसे कोई मनुष्य अपने आप को परमात्मा को प्रार्थना करता है।। किसी भी देवता के रूप में प्रार्थना करता है। तब उसी रूप में भक्त जो भी मुरादे होता है।। उन कार्य के रूप में कर्म के रूप में भक्त को मिल जाता है।। 


        जब मनुष्य किसी कार्य को बिना आशाएं बंधे कार्य करता है।  तब कार्य को करने के बाद मनन में कुछ पाने की या प्राप्त करने की आशाएं नहीं होती है। तब  कार्य के रूप में निष्काम कर्म कहा जाता है। मनुष्य के भीतर मनन कि लालसा नहीं होती।। कार्य के बदले किसी तरह  की आशा नहीं होती है। मनुष्य अपने आप को कार्य से मुक्त किया है। फल की आशा को पूर्ण रूप से मुक्त किया है। उने सिर्फ कर्म किया है।। कर्म करने के बाद फल की आशा नहीं रही।  तब इसे कार्य को निष्काम कार्य कहलाता है। 


अनुक्रणिका 7, मनुष्य जीवन का कर्त्तव्य उद्देश्य ओर लक्ष्य: /जीवन की अनमोल विचार


7.मनुष्य जीवन का कर्त्तव्य उद्देश्य ओर लक्ष्य:




                                

      अब कलयुग चल रहा है। कलयुग में मनुष्य भगवान से भी नहीं डरते हैं । कलयुग में मनुष्य सिर्फ अपनी आप की मानता है। कलयुग में मनुष्य व्यवहार  बहुत अगल है। यह मनुष्य अपने परिवार से भी प्यार नहीं करता है। आज के युग में मनुष्य के लिए सिर्फ पैसा जरूरी है। पैसे के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है। एक दूसरे का हत्या भी कर देता है। अपने परिवार से दुश्मनी कर लेता है।  इस युग में पैसा से बड़ा कुछ नहीं मानता है। मनुष्य बहुत बदल गई है। मातापिता ओर भाई भाई में नहीं बनती है। जीवन में पैसा कमाना बेहद जरूरी समझता है। 


        एक मनुष्य अपने जीवन को सफल बनाने के लिए अपने आप को बर्बाद कर लेता है। अपने अनमोल जीवन को बिना सत्य को जाने जीवन बिता देते है। जीवन में पैसे के अवला कुछ भी नहीं सोचता है। रात दिन पैसे को बनाने में अपने ज़िन्दगी को नष्ट कर लेता है। अनमोल जीवन को पैसे तोलता है। पैसे को ही दुनिया की खुशी मानता है।  सबसे ज्यादा समय पैसे कमाने में लगता है। तब कार्य करता है। जहा से सिर्फ पैसा कमाना होता है। पैसे के बिना कुछ सोच नहीं रखता है। आज मनुष्य में पैसे की भूख है। जो कभी नहीं मिटती है। कुछ पैसे बनता है ओर पैसे कमाने में अपना जीवन लगता है। जितना पैसा आता है उस में कभी भी खुशी नहीं मानता है। जीवन सिर्फ पैसा कमाना उत्तम कार्य मानता है। मनुष्य के विचारो में सिर्फ पैसा है। आज समग्र संसार के सोच में पैसे है। मनुष्य को पैसे ने विचारो में घर बनाया है।। मनुष्य के विचारो पैसा सबसे पहले आता है। यह संसार रात दिन पैसे बनाने में लगा है। मनुष्य के लिए जीवन जीने से ज्यादा पैसे कमाने के समय बिताना पसंद करता है।  मनुष्य चाहता है कि, खुद के पास बहुत सारे पैसे हो । पैसे से सब कुछ खरीद सकता है। किसी भी चीज को पाने के लिए पैसा का होना बेहद जरूरी है। आज मनुष्य सब कुछ छोड़ देता है। सिर्फ पैसे के लिए आज पैसा सबसे बड़ा हो चुका है । संसार में प्रत्येक वस्तु को पाना है। तो सबसे पहले वस्तु के बदले कुछ कीमत चुकानी होती है। आज कुछ भी नहीं मिलता है। जब आप के पास पैसा ना हो तो, कुछ भी पा नहीं सकते है। आप के पास पैसा है। तो आप के चरणों में सब कुछ मिलता है। जो पैसे से खरीदा जा सकता है। वोह सब कुछ चीजों को आप प्राप्त कर सकते हो। दुनिया में सबसे पहले पैसा का मूल्य होता है। दुनिया की प्रत्येक वस्तु को पैसे खरीदा जा सकता है। तो , आखिर में संसार के सभी मनुष्य पैसे के पीछे भागता है। अपना जीवन ही पैसे को कमाने के जीवन लगता है। जब तक मनुष्य पैसा कमाता है। तब तक मनुष्य सब कुछ चीज को प्राप्त कर लेता है।  मनुष्य के पास सब कुछ आ जाता है। मनुष्य के पास पैसे ना हो तो, मनुष्य अपने जीवन में कुछ भी चीज को प्राप्त नहीं कर पाता है। अपने जीवन में अपने परिवार के लिए अपनों के स्वप्नों को पूरा करने के लिए । एक मनुष्य अपने जीवन में पैसे को कमाना ही एक सच्चा रास्ता समझता है। अपने परिवार के लिए ही मनुष्य अपने आप को काम में लगता है। अपने जीवन को पैसे कमाने में एक रूप बना देता है। समय के साथ चलता है। काम करते करते पैसा कमाता है। ओर पैसे कमाते कमाते अपने परिवार के साथ जीवन बिताता है। मनुष्य अपने परिवारों से बंधे ही अपना जीवन को जीता है। संसार के प्रत्येक कार्य को करता है। सभी तरह का काम करता है जहा से मनुष्य पैसा कमाता हो।। मनुष्य को पाता है जब पैसे कमाना बंद कर देता है। तब अपना परिवार को चलाने में असक्षम रहेगा। अपने परिवार को खाना , पीना , रहने के लिए घर, कपड़े, जीवन के जरूरी चीजे , सब कुछ प्राप्त नहीं कर सकते है। सब कुछ कार्य करने में संसार में मूल्य देना पड़ता है।  मूल्य को समझने के बाद ही मनुष्य पैसे से प्यार करता है। जीवन में जब तक है , तब तक पैसे कमाते रहना पसंद करता है। एक बात सच जो चुकी है कि , आज के कलयुग में पैसा मनुष्य के लिए सबसे बड़ा है। पैसे से कुछ कर सकते है।


      एक परिवार चलता है पैसे की मदद से  सब कुछ पैसे चलता है। एक छोटा सा परिवार है। जिस में मियाबिवि ओर दो बच्चे है।  इस छोटा सा परिवार को चलाने के लिए पैसा बहुत जरूरी होता है। अपने पत्नी ओर बच्चो को  रहने के लिए घर होना बेहद जरूरी होता है। अपने बच्चो को खाने पीने ओर कपड़े भी बेहद जरूरी है। परिवार चलाने के लिए  पैसे का होना जरूरी है। परिवार के जरूरतों को पूरा करना चाहिए है, लेकिन इसे पहले पैसा कामना भी बेहद जरूरी है। एक परिवार सुख से रह सकता है सिर्फ पैसे की मदद से। जीवन में हम सुख पैसे के बिना भी रह सकते है। लेकिन पैसे के बिना कुछ कार्य करना  असम्भव बनता है। इसीलिए , बात परिवार की हो या दुनियादारी का संसार में सब भी मनुष्य के लिए जीवन में पैसा का लेनदेन सबसे ज्यादा होता है। जीवन जब तक है, मनुष्य जब तक है। तब तक पैसा मनुष्य के लिए जरूरत ओर जिद बनती रहेगी। 



       जैसे मनुष्य अपने जीवन में कुछ प्राप्त कर लेता है। अपने कार्य को जीवन भर करता है। मनुष्य के लिए पैसा जरुरी होता है।  एक कागल के टुकड़े के लिए अपनी सारी ज़िंदगी लगा देता है। जीवन में परिवार ओर पैसा महत्व समझा है। सारी ज़िंदगी अपनों ओर अपने कार्य में लगा रहता है। अपने खुद की ज़िन्दगी पैसा कमाने में लगा देता है।  जैसे समय बीतता जाता है। वैसे वैसे मनुष्य अपने जीवन में बहुत कुछ कार्य को पीछे छोड़ आता है। जीवन में सिर्फ पैसे को ही सब कुछ सुख मानता है। जीवन पैसे के पीछे बिता देता है। अंत में मनुष्य के पास कुछ नहीं बचता है। सिवाय, फस्तावा के बिना एक अनमोल जीवन को पैसे के पीछे नष्ट करता है ।  जीवन में बहुत सारे पैसे कमा लेता है। लेकिन अपना देह साथ ना देने पे सारी ज़िंदगी का कमाता हुआ पैसा अपने आप को भी काम नहीं आता है । जीवन में कमाया हुआ पैसा रही रह जाता है। देह साथ नहीं देता, जीवन बीत जाता है। अपने पैसों को खर्च नहीं कर सकते है। अपने आप को समय नहीं मिलता है। पैसा का सुख मिल नहीं पाता है। सारी ज़िन्दगी पैसे कमाने में लगाया आखिर में वहीं पैसा किसी काम का नहीं हुआ। जब अपने खुद की आयु  समाप्त हो जाती है। तब मनुष्य के लिए फस्तवा के बिना कुछ भी नहीं बचता है। कि जीवन में कुछ कार्य को करो लेकिन समय के साथ अच्छा ओर भूरे के बारे में सोचना होता है। जीवन में किया जरूरी है और किस कार्य को करना बेहद जरूरी होता है।  



      जीवन मिला है तो जीवन में अपने कार्य के साथ जीवन कार्य को भी समझना पड़ता है। हमारे जीवन सबसे  विशेषता कार्य कोन सी हो सकती है। जीवन में सब कुछ प्राप्त किया है ओर जीवन में खुश हूं। आज सब कुछ प्राप्त कर सकता हूं इतना पैसा कमा लिए है।  जीवन में पैसा बहुत कमाया है। लेकिन जीवन में पैसे कमाने के साथ साथ कुछ समय के अपने खुद के कार्य भी करना होता है। अपने परिवार का जीवन भर साथ तो देते रहते है। लेकिन अपने परिवार के लिए  एक अच्छा जीवन कार्य को पूर्ण करना भी जरूरी होता है। जीवन में बहुत कुछ पा लेंगे। अपने स्वप्नों को चु लेंगे। सबसे बड़ा इंसान बन जायेगे। खुद की एक पहचान होगी। एक कामयाब इनसान बनोगे। जीवन में सब कार्य का सार्थक जीवन बना लोगे।  जीवन में एसो आराम , इज्जत , सॉरत , मान सम्मान , सब कुछ प्राप्त किया हो। जीवन में किसी भी कार्य को करना नहीं होगा। जीवन में सिर्फ सुख ही सुख होगा । जीवन खुशियों से भरा जीवन हो जाएगा ।  


      हमे बहुत दु:ख होता है कि, एक मनुष्य अपने जीवन सब कुछ प्राप्त करता है  लेकिन जीवन में सब कुछ प्राप्त किया हुआ सब कुछ व्यस्त होता है। जीवन में मिथ्या कार्य को जीवन में करता रहता है। मिथ्या जीवन कार्य में अपनी अनमोल अमूल्य जीवन को नष्ट करता है। आखिर में अपने देह से मुक्त हो जाता है। अपने प्राण छोड़ देता है।  लेकिन जीवन में ऐसा कार्य जो करना मनुष्य के बेहद जरूरी होता है। मनुष्य वहीं कार्य को जीवन में कभी भी कर नहीं पता है। मिथ्या जीवन में सब कुछ कार्य करता है। यहा से मनुष्य को पैसा मिलता हो। कहा मनुष्य को खुद को फायदा होता हो , वह सब कार्य कर लेता है।  मनुष्य के लिए मिथ्या जीवन के कार्य करने में बहुत से समय मिलता है। लेकिन अपने जीवन को उधार करने के कार्य को करने में कभी भी समय नहीं मिलता है। मनुष्य अपने मन पसंद कार्य को जीवन भर के लिए करता है। जहा, मनुष्यों को कार्य करने में मजा ओर आनंद आता है। 


      मनुष्य के लिए, अपने अनमोल अमूल्य जीवन को समझना जरूरी है।  अपने मनुष्य जीवन में जानना ही देवी कार्य कहते है। अपने मनुष्य जन्म को सार्थक बनाए।  जीवन मिला है तो , मनुष्य जन्म का रहस्य को जाने। अपने मनुष्य जन्म का जीवन कार्य को जाने।  मनुष्य जन्म में किस कार्य को करना जरूरी है। मनुष्य को मिथ्या कार्य से दूर रहे लेकिन जीवन कार्य को पूर्ण रूप से समझे ओर जाने। जीवन में मनुष्य किस कार्य को करना है।। जीवन में  सत्य को पूर्ण रूप से जाने। मनुष्य जन्म को समझे ओर आकर्षित हो जाए। मनुष्य देह का जीवन कार्य को प्रारंभ से मुत्यू तक का ज्ञान प्राप्त करे। जीवन में ज्ञान को प्राप्त करे मनुष्य जन्म ही क्यू हुआ है।  मनुष्य जन्म अवतार उत्तम है। इस जन्म में मनुष्य का कार्य कोनसा उत्तम है। इस जन्म का रहस्य को जाने ओर जीवन में ग्रहण करते रहे। 


     ज्ञान को  प्राप्त करने का उपाय करे।  ज्ञानी महापुरुषों के चरण में अर्पित हो गई। ज्ञानी महापुरुषों को विनती करे  मनुष्य जन्म का रहस्य को उजागर करे। मनुष्य जन्म का उद्देश्य , लक्ष्य , कर्तव्य,ओर जीवन कार्य  को जानने की इच्छा रखे। ज्ञानी महापुरुष आप सभी को ज्ञान की ज्योत अखंड देगे। मनुष्य जन्म का उद्देश्य ,लक्ष्य ओर कर्तव्य आप को जानने का मौका प्राप्त होगा।  अगर , मनुष्य चाहे तो, अपने जीवन में ज्ञान को पल में प्राप्त कर सकता है। मनुष्य के लिए उत्तम कार्य अपने मनुष्य जन्म को जानना है।



       मनुष्य इस संसार में उत्तम जन्म है। इसी तरह जीवन के कार्य भी उत्तम है। जो भी मनुष्य जन्म का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। वोह मनुष्य अपने प्रति  जन्म ओर मरण के कार्य को समझता है। जीवन में देवी कार्य को करता है। मनुष्य अपने काम धाम में लगा रहता है।। अपने काम में मगन रहता है। मनुष्य मोहमाया में पड़ा रहता है। अपने आप को कभी पहचान ही नहीं कर सकता है। आखिर में मनुष्य जन्म किस हेतु हुआ है। मनुष्य जन्म अवतार को समझना ही नहीं चाहा। अपने कार्य से अन्य कार्य को जानने का प्रयास भी नहीं किया ।  जीवन में मिथ्या जीवन से बाहर निकलने का प्रयास भी नहीं किया। सत्य को जानना ही उत्तम नहीं समझा । मनुष्य अपने काम से बंधा होता है। रात दिन काम से बंधा मनुष्य मोहमाया में डूबा रहता है। कभी भी अपने आप को समझने का प्रयास भी नहीं करता है। मनुष्य जन्म को ज्ञान से परिपूर्ण समझे। ज्ञान का प्रकाश जीवन में ग्रहण करें।



        मनुष्य जन्म अवतार इस संसार में होता है। सारी ज़िन्दगी मोहमाया में डूबा होता है। जीवन में पैसे कमाने में समय बीत जाती है। पैसे के बिना कुछ नहीं दिखता है।  मिथ्या जीवन के कार्य को पूर्ण करने में ही अपना जीवन गुमा देता है। अपने आप को कभी जानना उचित नहीं समझते। ओर जीवन धीरे धीरे बीतता जाता है। जीवन में अपने खुद के कार्य करने जीवन बीत जाता है।  जीवन में ज्ञान को समझना ही रह जाता है। अपने जीवन को सुखमय बनाने में अपने आप को ज्ञान से दूर रखता है। 

सब कुछ प्राप्त करते हुए भी  कुछ नहीं प्राप्त कर पाता है।।  जीवन में सच्चे कार्य से वंचित रह जाता है।  ओर अनमोल अमूल्य जीवन नष्ट हो जाता है। मनुष्य जन्म में सत्य को बिना जाने अपने जीवन को नष्ट कर देता है। अपने प्राण त्याग देता है।  संसार में जो कार्य करना होता है। मनुष्य जन्म अवतार से जीवन कार्य को पूर्ण रूप से कर नहीं पाता है। मनुष्य जन्म से मुक्त हो जाता है।


आखिर में मनुष्य किया है , इने समझना बेहद जरूरी है। 

मनुष्य का देह के बारे में सब से मनुष्य जीवन देह का कार्य में स्पष्ट किया जाय है।। आप वह से सविस्तार से जान सकते हो।

_ मनुष्य का देह पांच तंत्र से बना है।

वायु ,जल, आकाश , अग्नि और पूथ्वी 

मनुष्य का देह इन पांच तंत्र छः वा तंत्र आप को जानना है। आत्मा और मनुष्य का संबंध मूत्यु तक ही सीमित है।

मनुष्य देह नाश हो जाता है।आत्मा अमर होता है।

आत्मा पूर्ण नया देह धारण करता है।   


जन्म चार तरह से होता ! पानी में से जन्म /मनुष्य और पशु आदि पछीने से जन्म/विंछि, मंकड़ आदि.!

अंडे में से जन्म /सर्प, चिड़िया आदि ! बीज में से जन्म /पेड़ पोंदे,वनस्पति छोड़ आदि!  संसार की जन्म रचना होती है।  

जिस में...अवतार होते है। 


लख 84 जन्म योनि होते है।

पानी में से जन्म /21 लाख

पछिने से जन्म/21 लाख

अंडे में से जन्म /21 लाख

बीज में से जन्म /21 लाख


लख 84 जन्म से  मनुष्य जन्म उत्तम कहा गया है। मनुष्य जन्म से ही आत्मा को जान सकते है।मनुष्य द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। मनुष्य जन्म का उद्देश्य जीवनकार्य आत्मा को जानना है आत्मा को शांति प्रदान करना है। आत्मा को मनुष्य जन्म से जाना जा सकता है। 



     मनुष्य का जीवन कार्य , उद्देश्य लक्ष्य ओर कर्तव्य है। आत्मा को जाने , ज्ञान प्राप्त करे ,  आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाएं, संयम को कर्मयोगी बनाए। कर्म योग से भक्ति योग में ले जाना है। ओर फिर भक्ति योग से ज्ञान योग की प्राप्त होता है।  ज्ञान योग में जन्म मरण से मुक्त हो जाते है। आत्मा परमात्मा का मिलन होता है। मनुष्य का कार्य ही।आत्मा को परमात्मा से मिलन करना। परमात्मा का दर्शन करना , आत्मा को शांति प्रदान करवना ,   मनुष्य का जीवन कार्य ही प्रभु दर्शन है! सत्य है ! धर्म है! कर्म है! ज्ञान है! भक्ति है! सब कुछ मनुष्य देह से ही संभव है। मनुष्य देह से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। 


      मनुष्य का कर्तव्य उदेश्य लक्ष्य ओर जीवन कार्य ही   ज्ञान की प्राप्ति है। ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति है।। सत्य की प्राप्ति है।  ओर परमात्मा की प्राप्ति होती है। मनुष्य जीवन में सत्य के मार्ग पे चलते हुए सत्य को जानना ही धर्म है। 


अनुक्रणिका 6, मनुष्य जीवन में कोन केसा होना चाहिए।: / जीवन की अनमोल विचार

6.मनुष्य जीवन में कोन केसा होना चाहिए।: 

                     

                           

हेल्लो, प्रिय मित्रो 

   

  आप जानते है कि, मनुष्य का व्यवहार , बर्ताव ओर स्वभाव से पहचान होती है। तो, जीवन में किस तरह दूसरों से व्यवहार करना चाहिए। केसे सब के साथ रहन सहन रखनी होगी। हमारी सोच ओर विचार को केसे बदले ओर समझे । जीवन में एक अच्छा ओर आकर्षित सच्चा इंसान बनना ही इंसानियत है।  सब के दिल को बस जाना ही एक अच्छा स्वभाव ओर व्यवहार होता है। हमारा व्यवहार केसा है , हम खुद को पता है। हमे अपने आप को बदलना चाहिए।


      एक छोटा सा परिवार की तरफ से समझना चाहूंगा। आशा आप सभी जानने की प्रयास करे ओर अपना जीवन को सुखमय बनाए ।  खुद के साथ दूसरों को समझने की कोशिश करें। एक परिवार में जितने भी सदस्य होते है। उसी तरह आप से बात करेगे।   परिवार में माता , पिता , भाई ,बहन, दादा, दादी, ओर भाभी किसी की परिवार में एक से ज्यादा भाई बहन होते है। लेकिन हमे यहां सिर्फ समझने के लिए पात्र लिए। ओर इसी मुदे पे बात करेंगे।  परिवार यानी स्वप्नों का घर एक खुशियों से भरा जीवन कहा जाता है। जीवन में परिवार से ओर कुछ खुशी नहीं होती है। जब परिवार साथ में हो तो सब मुश्किल दूर होती है। परिवार ही हमारी दुनिया/ संसार  होता है। परिवार के एक एक सदस्य हमे सबसे ज्यादा खुशी देती है। इसीलिए, परिवार से घर चलता है। संस्कार से सदस्य जीवन प्रेम से भरा होता है। हर पल परिवार के सदस्य ही अपनों का अहेशास करवाते है।  दुनिया वाले लाखों पाते करते है। लेकिन एक अपना लाखो बातो को नजर अंदाज करता है ओर परिवार से जुड़ जाता है। अपना विश्वास अपनों पे होता है। किसी ओर से लगाव नहीं रखता है। सबसे पहले अपनों का साथ देता है। पराए, आखिर में पराए ही रहते है।  परिवार के सदस्य किसी भी मुश्किल में साथ देते है , कभी भी आप से दूर नहीं जाएंगे। जो अपनों को ओर अपने प्यार को नहीं समझ पाते वोह इनसान किसी दूसरे का भी नहीं बन पाता है। परिवार से बड़ा कोई अपना नहीं। सब कुछ सुख परिवार से मिलता है। परिवार से कुछ बाते आपसे सुने भी मिलेगे। लेकिन उस में प्यार छुपा होता है।  परिवार के सदस्य हमे कुछ भी कहते है हमारे लिए भालाय की बाते होती है। हमे एक सच्चा रास्ता दिखने के लिए कहा जाता है। अपना परिवार अपना है। किसी ओर के परिवार में वह दुख वह अपनापन नहीं मिलेगा जो अपने परिवार में मिल पाएगा। आप लाख गलती करो अपने परिवार के सदस्य लाख गलती माफ कर लेंगे। लेकिन इनसान को खुद को पता होना चाहिए।। अब और गलती हमें नहीं करनी है।। समझे कि , अपना परिवार ही सच्चा है। ओर में गलती करता हूं। अपनों के साथ ही गलत ओर नफरत की दीवाल बना रहा हूं।।  संसार में वह इनसान बहुत खुश होता है। जो अपने परिवार को कभी भी हालत में नहीं छोड़ता है। लेकिन वह इनसान दुःखो से भरा होता है। अपने ही परिवार से दूर ओर नफरत करता है। जीवन में हमेशा दुःख में रहता है। इसीलिए , जीवन में परिवार से कभी भी दूर मत होना । अपने परिवार का पवित्र रिश्तों को निभाए उने छोड़े नहीं। महेसुस करे कि परिवार से बढ़कर कोई दौलत ओर सुख नहीं।  



À: पिता केसा होना चाहिए: 


       एक पिता का महत्व परिवार का रक्षक है। दुःख सुख में हमेशा साथ रहता है। अपने संतानों को सही दिशा दिखता है। हर पन साथ देता है। संतान जो भी चाहता है उने समझता है ।  ओर जीवन में मदद रूप बनता है। सब की सेवा करता है। परिवार का जिम्मेदारी अपने कंधो पे उठता है। एक पिता परिवार के लिए बहुत कुछ करता है। रात दिन महेनत करता है। अपने संतानों को किसी भी चीज की कमी ना हो। सबसे प्यार करता है एक  अनेरी मुस्कान लाते है। एक पिता का सायरा अपने संतान होते है।  


     एक पिता अपने अपने परिवार को बहुत अच्छे से समझता है। अपनी पत्नी ओर बच्चे को करुणा भाव से व्यवहार करता  है। पत्नी का स्थान सबसे ऊंचा रखता है। इज्जत करता है मान सम्मान देता है। अपने वडिलो के प्रति प्रेम भाव होता है। सत्य ओर धर्म का पालन करता है।  सभी के प्रति अच्छा बर्ताव करता है। सब की सूंता है। कहीं भी गलत कार्य नहीं करता है। सत्य को स्वीकार करता है। कभी भी गुस्सा नहीं करता । अपनों को अच्छे संस्कार देता है।। परिवार से भूल होती है।  तब एक सही दिशा निर्देश करता है। पिता का प्यार एक अनेरी मुस्कान देती है। पिता के बिना परिवार सुना सुना लगता है। किसी भी कार्य में साथ नहीं मिलता है। पिता हो तो सब कुछ अच्छा ओर आकर्षित होते है। किसी भी कार्य में सफलता मिलती है। एक पिता सबसे बड़ा मदद गार रूप है। जो हमेशा के लिए साथ रहता है।  पिता अपने परिवार के लिए सिर्फ अच्छा ही सोचता रहता है। पिता से ही सब कार्य आसान हो जाता है। पिता जीवन भर का साथी है। पिता के चरणों में दुनिया की सारी खुशी होती है। एक ही संसार का मार्गदर्शक होता है। पिता का प्यार एक बार ही मिलता है। एक ही सहारा पिता का प्यार।

पिता के बिना कुछ भी नहीं ।



B:माता केसी है होनी चाहिए।: 


     मातापिता जन्मदाता  का स्थान है। एक माता के चरणों में स्वर्ग होता है। माता जगत जननी है।  अमर प्रेम बरसाती है। माता अपने संतान के साथ ही सबसे अधिक मातृत्व होता है।  एक माता के लिए अपनों संतानों का प्यार ही होता है। एक माता के लिए सब संतान एक ही सम्मान है।  सब को एक जैसा ही प्रेम करता है। माता के नजरो में सब बच्चे अपने संतान ही मान लेती है। सब को प्यार से देखती है। किसी भी संतान ओर अन्य लोको से नंदा , नफरत, वेर , क्रोध , ईर्षा, नहीं रखता है।  माता के चरणों में प्रेम का ही सार होता है। माता का प्यार अतुट है। माता पुत्र का संबंध जन्मोतर का है। एक माता की नज़रों में अपने संतानों को हमेशा सुख देने में भी अपनी खुशी होती है। अपने संतान को दुःख में नहीं  देख सकता है। सन्तान को सही दिशा निर्देश करता है। एक माता का सुख अपने संतान की जीत में होती है। जब संतान जीवन में सत्य धर्म और परंपरा के साथ चलता है। तब एक माता के लिए बहुत खुशी की बात होती है। माता के अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटती है।


       एक माता के लिए अपनी संतान ही दुनिया है। सब सुख का कारण है अपनी संतान होती है। संतान  अपनी माता की नज़रों का तारा होता है। संतान को हमेशा साथ ले चलता है। संतान भूल करते हुए भी एक माता अपने संतान को पल भर में क्षमा कर देती है।  एक माता का वर्णन करना बहुत मुश्किल है। माता जो है। वोह नहीं है। ओर जो नहीं है वह माता। माता का प्रेम भाव अनेरी है। 




C: संतान केसी होनी चाहिए: 


       संतान जिस में बेटा ओर बेटी एक समान होती है।  मातापिता के नजरो एक ही सम्मान है। दोनों संतानों को एक जेसा ही प्रेम करता है। कभी भी  भेदभाव से नहीं देखता है। अपनी संतान में सारी खुशी ओर सुख को देखती है।। जीवन का सहारा  अपनी संतान है। एक संतान के लिए यह सोच ना बेहद जरूरी होता है। कि, हमारे जन्मदाता मातापिता है। हमे मातापिता का आभार व्यक्त करना चाहिए। हमे बचपन से लेकर आज तक बड़े होने तक हमारा सहारा बने। हमे  बहुत सारी खुशी दे। अपनी जरूरतों को पूरा किया । हमारे सारे स्वप्ने पूरे किए। हमारे लिए सब कुछ किया। हमे बचपन से पढ़ाया लिखाया ओर शिक्षित बनाया। जो भी अभ्यास करना था सब कुछ किया। पढ़ लिख कर एक अच्छी नौकरी मिली ।  जीवन में सब कुछ प्राप्त किया। जीवन में बहुत खुश है। किसी भी वस्तु की कमी नहीं है। आज जो भी है हम अपने मातापिता की कर्तव्य से है। इसीलिए हमें आज मातापिता के प्रति कर्तव्य हमारी है । जो आज हमें निभाना होगा। इस जीवन कार्य  को करना होगा। 



        संतान को अपने मातापिता के लिए सब कुछ कार्य करना चाहिए।  मातापिता के लिए दुनिया की सारी खुशियां चरणों में समर्पित करना चाहिए। मातापिता की को भी  खुशी हो उस में सामिल होना चाहिए। मातापिता का आज्ञा का पालन करना होगा । जो कहे , उने करना चाहिए।। मातापिता का सम्मान करे  इज्जत करे ओर सुख दुःख में साथ दे। कभी भी अपने मातापिता का साथ नहीं छोड़े। अपने जीवन में मातापिता स्थान आप के पहले हो। एक कर्मयोगी संतान बने।  आप की सारी खुश मातापिता की खुशी में होनी चाहिए। मातापिता का बढ़ती उम्र में साथ दे। उने जीवन में सहारा बने। जीवन का अंतिम समय तक मातापिता का साथ कभी ना छोड़े। एक संतान का संस्कार अपने मातापिता के सेवा में होता है।  


D:पति केसा होना चाहिए।:


    पति ओर पत्नी का रिश्ता पवित्र  होता है। किसी के परिवार में संबंधो का कड़वा हट  एक परिवार दूसरे परिवार जुड़ने पे होता है। कभी कभी अपने परिवार में ही शत्रु का कारण बन जाते है।  पति ओर पत्नी का रिश्ता पवित्र है । लेकिन जीवन में एक बात स्मरण में रखना बेहद ही जरूरी है।। आप जिस को भी जीवन साथी बनना चाहते है। पहले जीवनसाथी के बारे में जानना ही आप की जवाबदारी होती है।  मेरा कहने का मतलब है कि, सब पुरुष/स्त्री एक जैसी नहीं होती है। सभी के संस्कार अच्छे नहीं होते है। यदि आप को एक जीवन साथी संस्कारी मिली है । तो, आप के लिए बहुत खुशी की बात है। आपका घर स्वर्ग जैसा सुंदर बन जाएगा।   लेकिन आप को एक असंस्कारी पत्नी/पति मिली हो तो। आप का जीवन दुखो से भरा जीवन हो जायेगा। कहे का मतलब है कि, परिवार में कड़वा हट एक नई बहू के वजह से होता है। जब बहू का संस्कार अच्छे है। तो, ठीक है। जीवन सुखमय होगा। सब परिवार में साथ में रहेंगे।  लेकिन , किस तरह जीवन साथी के चाल चलन ठीक नहीं हो। जीवन में संस्कार नाम कि कोई स्वभाव नहीं हो। किसी भी अच्छे भूरे के फर्क नहीं समझती हो। किसी भी सदस्य के साथ अच्छा व्यवहार करना आता नहीं हो। अपने ही परिवार के साथ नफरत की दीवाल खड़ी करती हो। एक पति के लिए। एक अच्छी पत्नी होनी जरूरी है। जितनी अच्छी पत्नी होती है। उतनी ही जीवन ओर परिवार में खुशियां लाती है।  यदि पत्नी अच्छी नहीं है तो एक पति का फर्ज होता है। कि, अपनी पत्नी को सही दिशा निर्देश करे। 


     अपने परिवार में सब से प्यार से  रहना पसंद करे। सब भी से आदर ओर सम्मान करे । परिवार में सुख का कारण बने । सब के दिलो में  स्थान बनाए। सब की सुने सब को अच्छा लगे ऐसा कार्य करे। एक अच्छी बहू का फर्ज निभाए । अपना परिवार को खुशियों से भरा फुला करे।  सब कर्तव्य को एक अच्छी संस्कारी बहू की तरह निभाए। अपने घर को जीमेदारी का फर्ज निभाए। सही अच्छे कार्य करे। किसी को कभी सिकायत का मोका ना मिले।पति एक पत्नी को सारे फर्ज के बारे में समझा सकता है।


     अगर पति ही अपने पत्नी की चालाकी में डूबा जाए तो , ऐसे पति को किया कहना चाहोगे।  तब परिवार में एक बहुत बड़ा दुखो पहाड़ टूटता है। अपने ही परिवार में शत्रु बन जाता है। अपने मातापिता को पराया कर देता है। अपने बहन भाई का नाता  छोड़ देता है। घर बिखर जाता है। परिवार दु:खो से भरा हो जाता है। एक गलत से एक गलत सोच से अपने ही परिवार में शत्रु बनते है।  


      एक पति अपने पत्नी की इज्जत करे मान सम्मान दे।  दुनिया की सारी खुशी दे। पत्नी की एक अच्छी बाते सुने  ओर समझे । पत्नी की जरूरतों को ध्यान में रखे। पत्नी की दुःख ओर सुख का साथी बने । जीवन भर के लिए साथ दे। कभी भी अपनी से दूर नहीं करे। एक अच्छा पति  बने । एक पत्नी के नजरो में सच्चा इंसान बने अपने आप में इंसानियत को बसा ले।। जीवन में परिवार से साथ अपने पत्नी की जीमेदारी समझे। अपने पत्नी सारी जरूरत को पूरा करे। अपने पत्नी को सारे बंधनो से मुक्त करे। पत्नी जो भी करना  चाहती है।। वोह सब करने में मदद रूप बने। एक अच्छा कार्य में साथ दे ओर सच्चे मन से आभार व्यक्त करे। जीवन में एक अच्छा पति बने ओर पत्नी का दिल में जगह बनाएं।



E:पत्नी केसी होनी चाहिए:


     एक अच्छी पत्नी हर किसी के भाग्य में नहीं होता है। एक अच्छी संस्कारी बहू हर किसी के भाग्य में नहीं होती । वोह घर के सदस्य  नशिब्दार होते है। जिसे बहुत अच्छी संस्कारी बहू , पत्नी ओर भाभी मिलती है। अगर ,बहू अच्छी हो तो सारे घर को खुशियों से भर देता है। सब भी आदर सम्मान से  रहते है। प्यार से रहना सीखती है। सब के बारे में चिंता रहती है। सब की सेवा करती है। एक अच्छी पत्नी एक अच्छी बहू भी होनी चाहिए। पत्नी अपने परिवार का हिस्सा बनती है। परिवार का दुःख अपना दुःख मानती है। परिवार के सुख ही अपना सुख मानता है। सबसे पहले दूसरों का विचार किया करती है। परिवार के सभी सदस्य बेहद अहम ओर सब से प्यार करती है। एक सच्चा  रिश्ता निभाती है। 


       एक पत्नी अपने परिवार के साथ साथ अपने पति का भी अमूल्य योगदान निभाती है। सुख दुःख के साथी बनते है।  अपने पति का पतिधर्म ओर कर्तव्य को निभाती है। पत्नी पति का साथ कभी नहीं छोड़ती है।। पति ओर पत्नी के बीच प्यार  होना जरूरी है। जीवन में पति ओर पत्नी में प्यार ना तब रिश्ते में दरार आना चालू होता है। पत्नी एक अच्छी बहू और अपने परिवार को चलाने में  सक्षम होनी चाहिए। कभी भी परिवार से साथ नहीं छोड़ना चाहिए। पराए , लोको से परिवार की इज्जत को कभी भी मज़ाक नहीं बनना । अपना परिवार ही हमारी दुनिया होती है। 

एक अच्छी पत्नी का फर्ज निभाए। 

एक अच्छी बहू का फर्ज निभाए

एक अच्छी भाभी का फ़र्ज़ निभाए

एक अच्छी मा का फ़र्ज़ निभाए

एक अच्छी सास की फ़र्ज़ निभाए 

एक अच्छी दादी का फ़र्ज़ निभाए


      सबसे पहले एक अच्छी बेटी का फर्ज निभाती है। इस के बाद एक अच्छी पत्नी की फ़र्ज़ निभाती है।  एक स्त्री एक नारी सब में अटूट रिश्ता निभाता है। जन्म से नारी शक्ति अपने कर्तव्य से कभी नहीं  पीछे हटती है। इसी नारी जो सब की प्रति प्रेम भाव रखती हैं। 


 


अनुक्रणिका 5, मनुष्य का जीवन व्यवहार / जीवन की अनमोल विचार

5. मनुष्य का जीवन व्यवहार


          
                                      


    संसार में मनुष्य जन्म अवतार उत्तम है। कहा जाता है कि, मनुष्य अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानता है। इसी अंधकार में जीवन जीता है। कि, वहीं सर्वश्रेष्ठ और शक्तिशाली समजदार समजता है। वहीं सब कार्य को कर लेता है। मनुष्य के जीवन व्यवहार और बर्ताव को पहले से ही रचना की कई है। मनुष्य के स्वभाव को जाना जाता है। कि, वह मनुष्य किस तरह का व्यवहार रखता है।  मनुष्य जीवन उनकी व्यहार से ही पहचान होता है। सब के साथ अच्छा बर्ताव और व्यवहार करना। मनुष्य जीवन का एक पवित्र विचार होता है। सब के साथ प्रत्य व्यक्ति के साथ प्रेम भाव रखना है। अपने भीतर करुणा भाव होना। नम्रता भाव होना । सहनशीलता होना।  


    जिस तरह, मनुष्य जीवन में  जीवन जीने के लिए। बहुत कुछ  पाना और खोना भी पढ़ता है। कुछ पाने के चाहत में और कुछ खोने के डर में आश्चर्यजनक परिणाम होते है।  ना चाह के भी कार्य को पूरा करना पड़ता है। कुछ मजबूरी तो कुछ समय के भूरे दिन आना। कुछ अपने भी संतानों से दुःखो को जीवन में ग्रहण होना। जीवन में बहुत सी कठिनाई है। जीवन जीने में एक एक पल दु:खो से भरा जीवन हो जाता है। 


   संसार में एक ऐसा प्राणी है। जो सब से अच्छा भी है। और सब से भुरा भी है।  हम जो प्राणी की बात कर रहे है। उस प्राणी का नाम मनुष्य है। इस वाक्य में मनुष्य को प्राणी की तरह देखा गया है। क्यू कि, यह मनुष्य अपने लिए कुछ भी कार्य करने में कभी भी पीछे नहीं हटता है। जो कार्य करना चाहता है। उसे पूरा कर के बाद ही छोड़ता है।  यदि, कार्य में कोई अनुनी यानी करना चाहता है। तो, कार्य को करने के लिए किसी भी मनुष्य को नहीं देखता है। अपने कार्य को ही संपूर्ण समजता है। अपने कार्य के बिना कुछ नहीं। आपने कभी ना कभी घर ग्रहथी देखी होगी। घरों में नफरत की दरार क्यू होती है। अपने आप को अंध विश्वास  में रखने से। कार्य से सब कुछ है। जब कार्य होता है। कार्य के पीछे पैसे आते है। जब पैसे आते है। संपत्ति पीछे पीछे चली आती है। संपत्ति के पीछे आमीन जायदाद आती है। जीवन में सफल होना, सब कुछ पा लेना ही संपूर्ण जीवन मान लेता है। जीवन में सफल होने के लिए जीवन के साथ साथ जीवन कार्य को समझे और जीवन के उद्देश्य , लक्ष्य , कर्तव्य ,देवी कार्य को समझे। 



   यदि, 1दिन यानी 24घंटे  एक मनुष्य को सब कुछ कार्य करना पड़ता है। मनुष्य के पास कुछ भी समय नहीं मिलता है।   फिर भी अपने परिवार के लिए कुछ समय निकाल लेता है। जब किसी व्यक्ति का परिवार हो जाता है।  तब उने सबसे जड़ा शतक जड़कर रहना चाहिए कि, हमे कुछ समय परिवार को देना है। आज के युग में समय कोई किसी के लिए नहीं निकाल सकता है। अपने मातापिता ,भाई बहन  , संतानों के लिए , फिर पत्नी के लिए भी समय नहीं दे पाते है। अपने सगे सम्बन्धी को भी नहीं दे सकते हैं। समय यानी कुछ पल का समय लगता है। जीवन में मनुष्य पैसे कमाने के पीछे लगे है। किसी को किसी के लिए समय ही नहीं होता है। अपने अपने काम में एक दम व्यस्त रहते है। अपने अपने काम ही देखते है। किसी भी व्यक्ति के बारे में कभी भी नहीं सोचता है। बाहर की दुनिया से दूर रहना पसंद करते हैं। यदि, किसी को मदद की जरूरत है। फिर भी मदद करना  अपने आप में इंसानियत को ही मार दिया है। किसी भी भूखे को रोटी खिलना पसंद नहीं करते है। फिर भी किसी को निंदा करना पसंद करते है। जीवन की पदलते समय में बहुत कुछ पा तो लेते है। लेकिन , जीवन से बहुत कुछ खो भी देते है। जिसे बहुत खुशी भी नहीं और दुख भी नहीं। फिर भी पा लेने से ज्यादा खोने का डर हर पल लगता है। पा लेना बहुत खुशी नहीं देती है।। लेकिन पा के खोने की गम बहुत होता है। इस पाने के चक्र में पाप की गठरी गले में बाध ली है। पाना यानी जो कभी हमारा होता ही नहीं। उसे पाने का सही खुशियों भी नहीं मिलती है। मनुष्य अपनी अमनोल जीवन को प्राप्त करने में बिता देता है। जो कभी हासिल ही नहीं होता । अपने जीवन को व्यस्त गुमाता है।। 





À " समय और पैसे कमाना":


    जीवन में मनुष्य सिर्फ पैसे  के पिसे भागता ही जाता है। भागता ही जाता है और पैसा मनुष्य को भागता रहता है।  मनुष्य जीवन में पैसे को सबसे ज्यादा प्रभावित और मूल्यवान समझता है। अपनी सारी ज़िन्दगी पैसे कमाने में समय लगता है। दिन होता है पैसे कमाने के लिए और रात होती है पैसे  कमाने के लिए। जीवन में सिर्फ पैसा पैसा पैसे के बिना कुछ भी नहीं। सबसे ज्यादा समय पैसे कमाने के लिए । जितना समय काम करने में निकलेगा। उतना ही ज्यादा पैसा मिलेगा। 


     मनुष्य अपने जीवन में पैसे कमाने के लिए बहुत से कला को शिखना पड़ता है। उस कला के माध्यम से मनुष्य पैसे कमाता है।  किसी ना किसी वस्तु से पैसा कमाता है। अपने जीवन में कला का प्रदर्शन होना चाहिए। जब कोई मनुष्य अपने अवड़त और कला को  जीवन में धारण करता है। उन के लिए पैसे कमाने के लिए आसान हो जाता है। अपनी कुशलता और लायकात से काबिल बनता है। मनुष्य को पैसे कमाने के लिए बहुत से रास्ते होते है। मनुष्य किसी भी तरह पैसे कमा ही लेता है।  कभी भी अपने आप को कमजोन नहीं समझता । जब मनुष्य पैसे कमाने के लिए एक रास्ता होता है। लेकिन जीवन में पैसे जाने के लिए बहुत से रास्ते होते है। 


     मनुष्य अच्छी पढ़ाई के साथ अच्छी नौकरी करता है। नौकरी कर के व्यक्ति अपना परिवार को चलता है। रात दिन महेनत करता है लेकिन नौकरी से संतोष नहीं होता है।  नौकरी से कम से कम पैसे मिलते है। इंसान अपने जीवन बहुत कुछ कर लेते है। अपना खुद का व्यवसाय / बिजनेस करता है। अपनी जीवन में बहुत सारे पैसे कमाने लगता है।  एक अच्छी सी अच्छी ज़िन्दगी जीता है। कुछ ऐसे भी इंसान होते है। जो अशिक्षित होने के बाद एक अच्छी नौकरी नहीं कर सकते। और पढ़ लिखकर शिक्षित व्यक्ति होने के बाद भी नौकरी पा नहीं सकते। 

लेकिन मनुष्य के भीतर पैसे कमाने का जरिया है  कोई अच्छी नौकरी करता है। तो कोई एक अच्छी नौकरी नहीं कर पाता। तो किसी को नौकरी ही नहीं मिलती है। फिर भी अपने जीवन में बहुत खुश है। जितना पैसा कमाता है। उतने में ही खुश रहते है। जितना भी कमाते उन के लिए काफी  होता है। बिजनेस करने वाले बहुत सारे पैसे कमाने लगता है। कोई अमीर है। कोई गरीब है। अमीर ओर अमीर बनता जा रहा है। गरीब ओर गरीब बनता जाता है। अमीर और गरीब एक अच्छी सीख मिलती है। गरीब को जितना पैसा मिलता है। उस में ही बहुत खुश रहता है। हमेशा खुशी मानता है।  एक अमीर इंसान हमेशा विचारो में डूबा रहता है। उन से ज्यादा पैसा कमाने चिंता करता है। पैसे इतने है कि, पैसे कभी भी कमी नहीं होती फिर भी पैसे से सबसे ज्यादा दुखी होता है। ओर पैसे कमाने में अपना जीवन बिताता है। ओर गरीब इंसान जो मिलता है। उसी में खुश रहने में जीवन बिताता है।  किसी को ज्यादा पैसा कमाना है तो किसी को जितना पैसा मिलता है उसी में खुश रहना चाहता है। लेकिन पैसे सिर्फ पैसे है। पैसे हमारी ज़िन्दगी नहीं है। पैसे के पीछे भागना अच्छा है। लेकिन इतना नहीं भागना चाहिए कि, अपने को ही पीछे छोड़ जाएं। अपने पवित्र रिश्ते को छोड़ दे। जीवन में पैसे कमाना बेहद जरूरी है। मनुष्य के लिए पैसे जरूरी है पैसे के बिना  किसी भी वस्तु को प्राप्त नहीं कर सकते । मनुष्य जीवन में पैसे को सबसे अधिक प्राप्त करना चाहता है। क्यू की आज की तारीख में पैसे से सब कुछ मिलता है। कहा जाता है कि, पैसा बोलता है। हा, यह सच है किसी भी वस्तु को प्राप्त करने के लिए पैसे का भुगतान करना पड़ता है। आज जमाना बदल गया है। पहले किसी भी वस्तु को प्राप्त करने के लिए बदले में किसी ओर वस्तु को देना पड़ता है। इस तरह वस्तु के बदले वस्तु का भुगतान करना पड़ता है।। आज के समय में ऐसा नहीं होता है।  आज के दिन में पैसा का जमाना है। किसी भी वस्तु को प्राप्त करना चाहते है। तो, भुगतान के लिए पैसे देना पड़ता है। इसीलिए पैसा कमाना मनुष्य के लिए बहुत जरूरी है। जैसे हम हवा, पानी ओर खाना के बिना रह नहीं सकता। ऐसे ही आज पैसे कमाने के बिना कुछ भी नहीं मिलता नहीं।  


     आज के दिन में मनुष्य को पैसे कमाते रहना चाहिए। अपने जीवन में सबसे ज्यादा पैसा को अहमियत दो, लेकिन सबसे ज्यादा अपने परिवार को अहमियत देना चाहिए। पैसा जरूरी  किसी वस्तु या फिर किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए। इसीलिए , पैसे के बाद अपनों को भी समय दे। पैसे कमाने में भी समय दो। पैसे ओर परिवार को तरचू पे टोला नहीं जाता है।  अपने कार्य को पूर्ण रूप से ही करे। काम करने समय पे पैसा कमाना चाहिए। अपने परिवार के लिए सब कुछ कार्य करना चाहिए। पैसे के साथ परिवार को भी समय देना चाहिए ।



B" बर्ताव ओर रहन सहन ""


         संसार में सब कार्य को करना सीमित है। जो हमारे लिए कार्य करना पड़ता है। उसे जीवन में करते रहना चाहिए।ज़िन्दगी की सफ़र में बहुत कुछ कार्य को समझे और करते रहे।  जिसे समझने के लिए आशन है। जीवन एक जैसी नहीं रहती । जीवन बदलती रहती है। घर संसार में सबसे अधिक अपनों को सुख देना या फिर उन की जरूरतो पूरा करना चाहिए। परिवार को चलाना और  जवाबदारी को निभाना होता है। अब एक तरफ अपने परिवार है। ओर दूसरी तरफ अपना काम है , परिवार को चलने के लिए पैसे कमाने बेहद जरूरी है। पैसे के बिना परिवार को सुख नहीं दे पाते है। जितना परिवार की जवाबदारी होती है। उतना ही पैसे कामना बेहद जरूरी होता है। 


        एक छोटा सा परिवार घर में  मातापिता , बहन भाई, भया भाभी , दादा दादी ,  बच्चे ओर अपनी पत्नी सब एक साथ रहते है। किसी का परिवार बहुत छोटा होता है। मातापिता , भाई  बहन , बच्चे ओर पत्नी, तो किसी का बच्चे ओर पत्नी होती है। जैसे परिवार में रहते है। ठीक ऐसे ही अपना खुद का एक छोटा सा परिवार बनता है। अपनी ज़िन्दगी खुशी से जीते है।  जीवन में सब भी दु:खो से पार लगाते हैं। जितना छोटा परिवार उतना ही सुखी परिवार हो।। परिवार से ही सब जुड़े होते है। संसार में परिवार के बिना कुछ भी नहीं होता है। मनुष्य जो भी करता है। अपने परिवार के लिए करता है। रात दिन एक कर के  परिवार को चलता है। कड़ी महेनत करता है। परिवार के साथ साथ जीवन में बहुत से कार्य करना पड़ता है। अपने परिवार के साथ कुछ समय देने के बाद अपना खुद का व्यवसाय बिजनेस काम करना पड़ता है। काम ओर परिवार को समय देना पड़ता है।  



मनुष्य तीन तरह के व्यवहार करने वाले होते है।

1. तमस 

2. रजस

3. तत्व 



 तमस :  का अर्थ होता है अंधकार , अज्ञान  

  बिना अच्छे भूरे को जाने जीवन जीता है।   ऐसे जीवन तामतिक जीवन कहते है।


 रजस: ओर मध्य में ऐसा मनुष्य होता है। जिस के पास ज्ञान तो है। लेकिन सरीर ओर मनन की लालसा से बंधे होते है। ऐसा मनुष्य जीवन अधर्म ओर पाप करता रहता है।  



तत्व : का अर्थ होता है ज्ञान , प्रकाश 

ऐसा मनुष्य का जीवन ज्ञान से भरा होता है।  धर्म , असत्य ओर परम्परा को जान के अपने कर्तव्य को निभाते चलता है। इसी संसार में रहता है। सन्यासी की भाती । 

ऐसे जीवन को तात्विक जीवन कहते है।

 


     मनुष्य के जीवन में गुन्नो को पहचाने के लिए इन तीन सब्द से जाना जाता है। कि, मनुष्य  का जीवन किस तरह का है। उनका रहन सहन ओर बर्ताव कैसा है। इसी तरह आप को इस संसार में मनुष्य देखने मिलेगे। जिसे आप को सामना करना पड़ता है। इन तीन गनों को आप बेहद ही आसानी से जान सकते हो। हमारे जीवन में भी इन तीन गुनों में से एक गुण हमारे भीतर छुपा होगा। मनुष्य गुणों से पहेचनाना जाता है। अब हम देखते ही है, संसार में कितने विचित्र इंसान है। जो पाप करने में कभी भी नहीं डरते नहीं।  ओर एक तरफ ऐसे इंसान है। जो प्रेम भाव से अपना जीवन बिताता है। सब को एक ही नजरो से देखता है। सब को अपना परिवार समझता है। ओर तीसरी तरफ ऐसा भी इंसान होता है। जो अंध विश्वास में जीता है। किसी अच्छे भूरे का ज्ञान नहीं होता है। अपना जीवन बिताता रहता है। उने के लिए किसी पे हक नहीं जताते । संसार में तीन गुणों के मनुष्य से आपको बहुत कुछ सीखना मिलता है। लेकिन निर्गुणी बन जाना ही उत्तम है। 


        प्रत्येक मनुष्य का जीवन कार्य  घर ओर घर से बाहर तक ही होता है। यदि इंसान घर में है। यानी घर काम में  लगा है।। घर से बाहर है यानी बाहर का काम में लगा है। मनुष्य में घर ओर घर से बाहर का ही कार्य करना होता है। इस जीवन में  घर से बाहर भी अपना व्यवहार रखना पड़ता है। सब के साथ अच्छा बर्ताव करना पड़ता है। मनुष्य में बहुत सी बदलाव होते है। जब वह घर पे होता है। तब उस में बर्ताव अलग होता है। ओर घर से बाहर नौकरी अन्य स्थान पे हो तब अगल व्यहार करता है। मनुष्य मे घर ओर घर से बाहर का जीवन कार्य अलग अलग होता है। जो घर में  अपना जीवन जीता है। वोह घर के बाहर अलग जीवन जीता है। अपनी ज़िन्दगी में बदलाव करना ही पड़ता है। जरूरत की हिसाब से बाहर ओर घर में। बदलना पड़ता है। इस तरफ मनुष्य के जीवन में हर बार बदलाव आता रहता है। इसी तरह परिवार के साथ अच्छा बर्ताव और व्यवहार करता रहता है। 


      जब मनुष्य अपने काम से नौकरी , बिजनेस या फिर अन्य काम में जाता है। तब उसी तरह अपने आप में बदलाव करना पड़ता है। यदि, मनुष्य में बदलाव नहीं हो तब मनुष्य में बड़ी मुश्किल आती है। मनुष्य सब कार्य करते है। कोई अच्छा कार्य करता है। तो, फिर कोई भुरा कार्य करता है। मनुष्य के लिए सिर्फ पैसे का मूल्य है।  चाहे, काम अच्छा हो या भुरा , बड़ा हो या फिर छोटा काम , मनुष्य अपने काम को प्यार होता है। काम की प्रति प्रेम होता है।



    उने जो भी काम दिया जाता है वह काम प्रेमभाव पूरी निष्ठा से कर लेता है। किसी भी माध्यम से काम करने में किसी भी कीमत में पूरा करना होता है।  मनुष्य जीवन में काम के प्रति प्रेम भाव होता है। जैसे मनुष्य अपने घर का काम प्रेमभाव ओर पूरी निष्ठा और लगन से काम पूरा करता है। ऐसे ही काम को पूर्ण करता है।  जीवन सिर्फ काम को ही महत्व दिया जाता है। काम से ही पैसे कमाया जाता है। मनुष्य जीवन पैसे कमाने में ज़िन्दगी बिताता है। पैसे कमाने का जरिया है समय दो ओर काम करो।


      इसी तरह जीवन में काम ओर पैसा  बहुत ही जरूरी है। मनुष्य घर से बाहर नौकरी या बिजनेस या खुश का काम , करने जाता है। यदि , किसी व्यक्ति के पास अच्छी नौकरी होती है। नौकरी से अच्छे खासे पैसे कमाता है। अपना परिवार खुशियों मानता है। पैसे की  कभी भी कमी नहीं होती है। जो महीने का कमाता है। उस के लिए बहुत पैसे है। परिवार को चलना आसानी हो जाती है। अपने नौकरी से प्यार करते है। काम करते करते पैसे भी जमा करता है। जीवन में सब कुछ प्राप्त करता है। परिवार के बाहर की ज़िन्दगी बहुत ही अलग जीवन जीता है।  अहंकार , अंधकार ओर मिथ्या जीवन में जीता रहता है। मनुष्य के भीतर करुणा होती है। सब को प्यार करता है। ओर दूसरी तरफ ऐसे भी मनुष्य होते है। दूसरों पे निंदा , नफरत , वेर करता है। 



        मनुष्य का स्वभाव , बर्ताव ओर व्यवहार उन की पहेचान है। सब भी मनुष्य भूरे नहीं होते है। बहुत से मनुष्य अच्छे होते है। जितने अच्छे है उतने ही भूरे होते हैं। भूरी आदल मिथ्या जीवन से आती है। मोहमाया की जीवन जीना अंधकार से बाहर आना ही नहीं चाहते।  मनुष्य का घर में रहने का अनुमान केसा है। घर के भीतर बहुत से रास्ते अगल अग्ला होते है। परिवार तभी अच्छा लगता है जब सब सदस्य एक साथ रहते हो। परिवार में साथ एक तरफ नहीं होते किसी के स्वभाव बर्ताव अगल होता है। सभी पसंद ना पसंद अलग अलग होता है। किसी को साथ रहना पसंद है। किसी को अकेले में रहना पसंद है।  सभी इंसानों का बर्ताव स्वभाव व्यवहार अगल अलग है। जीवन श्रेणी भी अलग अलग आती है। अपनी अपनी सोच होती है। सोच की तरफ से जीवन जीते हैं। कोई बहुत चालक होता है। तो फिर , कोई बहुत ही भोला पन से जीवन जीता है। किसी को गुस्सा बहुत आता है। किसी को गुस्सा आता ही नहीं। कोई सब को प्यार करते है। तो कोई प्यार से रहना नहीं आता। किसी की वाणी अच्छी है।  तो फिर,किसी की वाणी कड़वी है। 


       संसार में ऐसे भी मनुष्य होते है। जिस के लिए पैसा ही सब कुछ होता है। ओर दूसरी तरह अपना परिवार ही दौलत मिलकत होती है। दोनों में जमीन आसमान का फर्क पड़ता है। एक इंसान सब को मान सम्मान देता है।  दूसरी तरफ पैसे बड़ा कुछ नहीं समझता है। परिवार से बड़ा धन नहीं होता । जिस के पास परिवार नहीं होता उन को इस बात की पता है। उन के पास बहुत पैसे होता है। लेकिन परिवार को पैसे से तराचू पे टोल नहीं पता ।  


          परिवार में कड़वा हट आने का कारण अफ़वाए बाते ओर जलन होती है। जलन इस बात से आती है। किसी की सूखी परिवार को देखकर मुख जलता है। मुख जलने से अनुचित कार्य करने लगता है। किसी परिवार को संबंधों को तोड कर भिखर देता है।  परिवार में कड़वा पन आता है। अपने परिवार में ज़हर फैलाता है। परिवार में परिवार का ही सदस्य दुश्मन होता है। आखिर में परिवार में दरार क्यू आती है। एक परिवार होता है। जिस में सब सुख होते है। लेकिन ऐसा समय भी आता है। परिवार में किसी ओर का आन्ना समय होता है। तब परिवार को कुछ पाने के बाद कुछ खोना पड़ता है। कहने का  मतलब कि, यदि कोई परिवार में हिस्सा बनता है। पहले उन के बारे में जानना बेहद जरूरी है। किसी को घर का हिस्सा बनना आसान है। लेकिन बिना जाने किसी को हिस्सा बनना संकट के समान है। ज़िन्दगी में किसी को आने देते है। या फिर किसी को ज़िन्दगी में किसी को लाते है। जरूरी है, हम सब कुछ जान ले। तीन गुणों में से किस गुण में आती है। जैसी गुण की है। वैसे ही अपने परिवार में  करेगी। अगर , आप सोच गलत हो गई तो आप को बहुत मुश्किल जेलनी पड़ती है। ओर इस समय में परिवार में दरार भी आना चालू होता है। परिवार भिखर जाता है। 



        एक मातापिता का स्वप्न होता है। कि, अपने संतान का भी एक छोटा परिवार हो । अपने जीवन में घर ग्रहथी को अपनाए।जब संतान बड़ा होता है। विवाह के लायक बन जाता है। तब मातापिता अपने संतान का एक कन्या से विवाह अर्पण करवाता है।  घर में बहू का आगमन होता है। अपने जीमेदारी संतान उठाए। ठीक , ऐसा ही होता है। मातापिता ओर संतान के साथ एक परिवार हो जाता है। अच्छा जीवन बीतता है। अपने घर ग्रहथी में सब खुश होते है। ओर भी सदस्य भी होते है। यदि विवाह नहीं हुआ हो तो, भाई बहन भी अपने परिवार के साथ होते है।



      जीवन की कड़वी सच्चाई आप सभी को स्मरण अवश्य होगा। जब एक मातापिता अपने संतान की विवाह कर देता है। यदि, बहू की स्वभाव , बर्ताव , व्यहार , अच्छे नहीं होता है। तब वह बहू अपने साथ संतानों को भी परिवार से अगल कर देता है। उन के लिए  एक छोटा सा परिवार होना चाहिए। काम करो , पैसा कमावो, सुख रहो। छोटा सा परिवार जिस में मियाबिवी ओर बच्चे हो। संतान के लिए अपने मातापिता पलभर में दूर कर देते है। मातापिता का रिश्ता पलभर में तोड देता है। एक पत्नी के आने के बाद मातापिता भाई बहन सब को छोड़ देता है। उन के  लिए पत्नी ओर बच्चे सब कुछ हो जाते है। एक अपनी अगल दुनिया बसा लेते है एक सूखी परिवार । मातापिता के दर्द को कभी नहीं समझ पता है। भाई बहन को बिल्कुल पराया कर देता है। मातापिता को आसानी से दिल से बाहर कर देता है। दिल में एक नया घर बनता है, जहा पत्नी ओर संतान का स्थान देता है।  जो भी मातापिता में अपने संतानों के लिए किया है। जन्मदाता को पराया ओर अपने कर्तव्य से मुक्त करता है। किसी भी सदस्य को अपनाना नहीं चाहता है। मातापिता अपने संतान के लिए सब कुछ करते रहता है जब संतान बालक होता है। अपने पैरो पे खड़ा हो जाता है सब कुछ करता है। जो संतान को जरूरत होती है। सारे कार्य करते है।  बचपन से बड़ा होने तब माबाप का छाया होता है। माबाप का कड़ी महेनत होता है। संतान को सफल बनाया है। संतान के प्रत्येक कार्य के पीछे माबाप का छाया होता है। 


        माबाप अपने बेटे को शिशु से लेकर प्रत्येक कार्य करता है। इस में माबाप का प्रेम होता है। अपने संतान को सही दिशा दिखया। जब चलना नहीं आता था।। हाथ पकड़कर चलना शिखाया।  बोलना सिखाया। खाना सिखाया। सच्चाई की ओर चलना सिखाया। अच्छे संस्कार दिए। सत्य ओर धर्म का पालन करना सिखाया।

मातापिता संतान को  पढ़ना ओर लिखना सीखता है।। एक सफल शिक्षित बनता है। सब अभ्यास करवाता है जो जो अभ्यास करना होता है। जो भी करना चाहता है। जो भी पन्ना चाहता है। वोह सब एक मातापिता अपने संतान के लिए करता है। सारी जमापूंजी अपने संतान के पीछे लगता है।   मातापिता का एक ही विचार होता है। कि, संतान जीवन में सफल बने । अपने स्वपने को पूरा करे। मातापिता का साथ से संतान अपने पैरो पे खड़ा होता है। जीवन में सफल बनता है। संतान के पास सब कुछ प्राप्त होता है। जमीन जायदाद , गाड़ी बंगला, पैसा  असोआरम , मान सम्मान ,इज्जत सोरात सब कुछ होता है। किसी भी वस्तु का कभी भी कमी नहीं होती । अपने के मातापिता का कर्तव्य होता है। जो सब कुछ अपने संतान को मिलता है। लेकिन एक संतान यह सब कुछ पलभर में भूल जाता है। मातापिता के लिए कोई प्रेम भाव नहीं होता। जो भी, मातापिता की देन है। फिर  भी एक संतान अपने मातापिता को ही ज़िन्दगी से अपने कर्तव्य से दूर करता है। ऐसे संतान जीवन में कलक होते है। एक पराई स्त्री के लिए अपनों को अपने परिवार के सदस्य को छोड़ देता है।। इसी संतान से अच्छा है खूद की संतान ना होना। जब संतान छोड़ा था तब मातापिता की कर्तव्य होती है। कि अपने संतान को  साथ दे। संतान को सब कुछ खुशी दे। समय बदलने के बाद मातापिता का उम्र होने के बाद संतान का कर्तव्य होता है कि, अपने मातापिता का साथ दे। मातापिता को सुख रखे। खुशियां दे। लेकिन एक संतान की खुशी होती है। मातापिता ओर बहन भाई से दूर होने से। अपनी कर्तव्य से दूर होने से। 

ऐसे संताने होते है जो  परिवार में दुखो का लहर लाते है। एक सूखी परिवार दुख से भरा हो जाता है।  लेकिन इसे पहले एक अच्छी पत्नी होना जरूरी है। जब पत्नी का व्यवहार, बर्ताव , स्वभाव अच्छा नहीं है। तब  परिवार बहुत बड़ा दरार आता है। परिवार टूट जाता है। अपने पराए होते जाते है। ज़िन्दगी में कड़वा हट आती है।  किसी से संबंध बनना बेहद कठिन लगता है। इसी संतान परिवार में अच्छा नहीं रह सकता है। जीवन में घर से बाहर भी एक सच्चा इंसान नहीं पन पता। घर की बाहर भी स्वभाव अच्छा नहीं होता।  नौकरी करते समय भी सभी से दया करुणा भाव से बातचीत नहीं रखता। समाज में अच्छा व्यवहार, बर्ताव , स्वभाव से मनुष्य महान बनता है।। संतान में संस्कार अच्छे होने चाहिए। ज्ञान की प्राप्ति नहीं होता है  तो, समाज में मनुष्य अनुचित कार्य करता रहता है। 



      दूसरी तरफ एक ऐसा भी संतान होता है। जो सब से अगल होता है।  मातापिता का अच्छे कर्म से जो ऐसा संतान प्राप्त होता है। ऐसे संतान के लिए  परिवार ही सब कुछ होता है। खुद को एक अच्छा इनसान बनाता है। इंसान यानी खुद में इंसानियत होनी चाहिए।   एक अच्छा संतान सब को मान सम्मान देता है। उन के नजरो में सब एक समान है। कोई बड़ा नहीं कोई छोड़ा नहीं। कोई गरीब नहीं कोई अमीर नहीं। कोई अच्छा नहीं कोई भुरा नहीं। सब उन को प्यारे है।  परिवार के सदस्य ही संसार है। मातापिता जन्मदाता है। मातापिता स्थान ऊचा है। मातापिता की आज्ञा का पालन करता है। जिस रास्ते पे चलना सिखाया है। उसी रास्ते पे चलता है। भाई बहन सबसे प्यारी है। एक अच्छी साथी है। जितना अपने परिवार  में स्वभाव रखता है। जितना प्यार करता है।। उतना ही दूसरे मनुष्य के साथ प्रेम भाव से जीवन जीता है। हमेशा सब का आदर करता है। सब की मानता है। सब को साथ ले के चलता है। एक अच्छी संतान के नजरो में सब के प्रति प्रेम बरसता है। व्यवहार इतना अच्छा होता है। सब को मोहित कर ही लेता है।  सब के नजरो में एक अच्छा इनसान बन जाता है। हर कोई दिल से प्रशंसा करते है। जिस का जैसा स्वभाव होता है। वैसे ही लोको के नजरो में बन जाता है।   


      संतान को सही मायने में अपने मातापिता का मान सम्मान करना चाहिए। हो सके इतना प्रेम भाव से बर्ताव करना चाहिए। मातापिता का स्थान सबसे ऊंचा रखना चाहिए।  मातापिता को हमेशा खुश रखो। जीवन भर मातापिता का सेवा करो । हमारा कर्तव्य है कि, हम अपने मातापिता को जीवन भर साथ दे। सभी मुश्किल में साथ दे। हमारा अन्य सदस्य हम से दूर हो जाए लेकिन अपने मातापिता का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। मातापिता की इज्जत करे । जितना अपने भाई बहन , सगे संबंधी ओर  अडोस- पड़ोसी वाले से भी एक अच्छा स्वभाव के साथ इज्जत करना सीखे। एक अच्छी संतान अपने अच्छे संस्कार से मातापिता का नाम रोशन करता है।


      यदि एक संतान का जीवन करुणा, दया ओर  प्रेम से भरा होता है। इसी संतान का जीवन प्रभुमय होता है।  संतान में सत्य ओर धर्म परम्परा से चलता है। इसी संतान में ज्ञान का भंडार होता है।  सब कुछ जानता है। संसार की प्रत्येक कार्य करता है। लेकिन मोहमाया नहीं होता । अपने परम कर्तव्य को निभाता है।  संसार की अच्छी ओर भूरे कार्य को जनता है। असत्य से दूर रहता है। सत्य का पालन करता है।। धर्म जानता है। कर्म भी जनता है। सारे कार्य करता है।। किन्तु , उस कार्य में आशा नहीं लगता । जो भी कार्य दिया जाता है।  उसी कार्य को करता है। तन ओर मनन की लालसा से बंधा नहीं होता। जीवन में वेर , नफरत , ईर्षा , क्रोना, क्रोध, घृणा, जीवन में वाश नहीं करने देता। जीवन में अच्छे गुणों से बंधा होता है। 


       एक संतान की पहेचान मातापिता से होती है। यदि, संतान में गुण अच्छे नहीं होते है। तब परिवार के सदस्य में ऐसे गुण होते है।  किन्तु , एक संतान में देवी गुणों से भरा जीवन जीता जीता है। तब एक मातापिता के लिए बहुत खुशी का माहौल बनता है। कि, उन की संतान में ज्ञान भरा होता है।  ज्ञान को समझता है। ज्ञान का प्रकाश जीवन में ग्रहण किया है। मातापिता एक ही आशा ओर भावनाए होता है। कि, अपनी संतान की स्वभाव , संस्कार अच्छे हो। सब के साथ अच्छा व्यवहार करें।  सब को समझे और एक दूजे को मदद में आए। एक सच्चा इनसान बने ओर अपने जीवन सब के दिलो में स्थान बनाए।


""""" इस तरह.... मनुष्य जीवन का व्यहार  अपने भीतर अलग अलग होता है। जिस का जैसा स्वभाव होता है। समाज के लोग उसे वैसे ही जानते है।। व्यवहार सब को अच्छा रखना चाहिए। जीवन में सभी  सच्चे ओर बलवान नहीं होते। कब कहा हम सब एक दूसरे को काम आए। जीवन में अपने कर्तव्य को जान ले तो , हमारा स्वभाव ओर बर्ताव करुणा से भर जाएगा।  पहेचान , अच्छे लोको की होती । भूरे स्वभाव वाले को मनुष्य नाम से ही चिड़ते रहते है। 


    अपनी सोच , विचार ओर नजरिया को बदलना पड़ता है। यह संसार आपका स्वागत करेगा।  एक अच्छा ओर सच्चा इंसान के लिए। जीवन में सत्य , धर्म ओर कर्म परम्परा से चलता है।  जीवन में अपने से ज्यादा दूसरों खुशी देना ही सच्चा जीवन है। हम तो खुश ही है। यदि एक अकेला इनसान बेहद खुश  रहता ही है। अपनी खुशी से ज्यादा दूसरों को खुशी दे। सार्थक जीवन में सत्य का पालन होता है।




श्रीमद् भागवत गीता /महाभारत ज्ञान सार ऑडियो/devine knowlegde by lord Sri Krishna

 short episode Audio 1 श्रीमद् भागवत गीता/महाभारत ईश्वरीय ज्ञान सार श्री कृष्ण   Watch "श्रीमद् भागवत गीता /महाभारत ज्ञान सार audio 1...

Srinkearn