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Tuesday, July 21, 2020

अनुक्रणिका 11, मनुष्य जीवन में ज्ञान योग / जीवन की अनमोल विचार

11.मनुष्य जीवन में ज्ञान योग 


                                 

       मनुष्य के जीवन में ज्ञान की प्रकाश होना ही चाहिए। मनुष्य अपने आप को ज्ञान से तेज होता है। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में ज्ञान को प्राप्त करना चाहता है।  जीवन में ज्ञान रूपी अंधकार को दूर करना चाहता है। मिथ्या जीवन को नष्ट करना चाहता है। मनुष्य अपने जीवनकाल में प्रत्येक ज्ञान का भंडार प्राप्त करता है। मनुष्य जीवन में ज्ञान को प्राप्त करता ही रहता है। ज्ञान  मनुष्य जीवन में बदलाव लाता है। ज्ञान से मनुष्य जीवन में किसी भी कार्य को कर लेता है। ज्ञान में उत्तम को समझना ही सच्चा रास्ता है। जन्म से मुत्यु तक का सफ़र में मनुष्य बहुत अपने आप को ज्ञान की प्राप्ति कर लेता है।  मनुष्य जीवन जो भी कार्य करता है। उस सभी में ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान की बिना मनुष्य कुछ भी नहीं कर पाता है। 


        हम  ब्रह्म ज्ञान की  बात कर रहे है। मनुष्य जीवन ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति  ओर प्रकाश होना चाहिए। ब्रह्म ज्ञान यानी आत्मा ओर परमात्मा की प्राप्ति करना ।  मनुष्य अपने अच्छे कर्म से जीवन को सफल बनता है। मनुष्य अपने जीवन में कर्मयोग से भक्तियोग  ओर भक्तियोग से ज्ञानयोग की प्राप्ति करता हैं। मनुष्य अपने जीवन में कर्म करता रहता है। भक्ति के मार्ग से मनुष्य अपने आप को ज्ञानयोग का द्वार खुल जाता है। मनुष्य जन्म ओर मरण का नाता जान लेता है।। ज्ञान की प्राप्ति से  आत्मा को जान लेता है।। जब मनुष्य आत्मा को जनता है तब संयम परमात्मा का साक्षात्कार दर्शन हो जाता है। ज्ञान की प्राप्ति कर्म , भक्ति ओर ज्ञान से होती है।


       परमपिता परमात्मा को प्राप्त करना ही ज्ञानयोग है। अपने आत्मा को जानना ही ज्ञान है।  संयम को आत्मा के रूप में परमात्मा देखना ही ज्ञान है। आत्मा ओर परमात्मा का मिलन ही ज्ञान है।  जीवन के सत्य ओर धर्म को समझना ही ज्ञान योग है। ज्ञान का दीप परमपिता परमात्मा है, ज्ञान को प्राप्त करना ही धर्म है।  परमात्मा को जन्म ही मनुष्य जीवन का जीवन कार्य ओर कर्तव्य है।। उद्देश्य, लक्ष्य ओर कर्तव्य मनुष्य को अपने जीवन में ज्ञान को जानना है।

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