10.मनुष्य जीवन में भक्ति योग
भक्ति का मनुष्य जीवन अहम भाग है।। भक्ति से ही मनुष्य जीवन में बदलाव आता है।।भक्ति का रंग मनुष्य के जीवन में करुणा भाव से रचा रहता है।। भक्ति से मनन प्रसन्न रहता है। भक्ति से मनुष्य के भीतर आस्थाएं बंधे होते है।। अपने भीतर भावनाए होती है। मनुष्य जीवन में भक्ति ही अपने मनन की शुद्धता को पूर्ण रूप धारण करती है। भक्ति से ही संसार में प्यार होता है। सब से प्यार से रहना पसंद करते है। भक्ति में प्रेम होता है। भक्ति में सत्य ओर धर्म होता है।। भक्ति में इनसान कि इंसानियत होती है। भक्ति से ही सब मनुष्य में एकता भाव होती है।। भक्ति से ही मनुष्य जीवन में सुख का अनुभव होता है। भक्ति से मनुष्य जन्म अवतार उत्तम मानता है।
मनुष्य के लिए बहुत से भक्ति होती है। मनुष्य अलग अलग भक्ति करते है।। मनुष्य अपने मातृ भक्ति , पितृ भक्ति, भाई भक्ति , बहन भक्ति, मित्र भक्ति सभी तरह की भक्ति होती है।। लेकिन मनुष्य के लिए उत्तम भक्ति परमात्मा की भक्ति है। परमात्मा की भक्ति ही देवी भक्ति है। ओर सेवा में सबसे उत्तम प्रभु सेवा है। परमात्मा की भक्ति ओर सेवा करे। जीवन में मनुष्य प्रभुमय ओर भक्ति से भरा जीवन बन जायेगा।
मनुष्य के जीवन में भक्ति को पूर्ण रूप से धारण अपने कर्म से आता है। मनुष्य जीवन में प्रभु के बिना मनुष्य भक्ति भी नहीं कर पाता है। मनुष्य के जैसे कर्म होते है। मनुष्य ठीक उसी तरह अपने जीवन में रहता है। मनुष्य के भीतर प्रेम भाव नहीं हो तो मनुष्य भक्ति को पा नहीं सकते हैं । भक्ति अच्छे कर्म करने वाले को भी प्राप्त होता है।
मनुष्य में अगर नास्तिक कर्म से बंधा हो तो, मनुष्य अपने जीवन में भक्ति का द्वार बंद रहता है। मिथ्या जीवन जीता रहता है। भक्ति से दूर रहते है। मनुष्य के जीवन में भक्ति के लिए , संपूर्ण रूप से प्रेम भाव , करुणा , दया, सत्य, धर्म ओर कर्म से बंधे होने चाहिए। मनुष्य अपने आप में परमात्मा की स्मरण करता होना चाहिए। परमात्मा की आराधना करना चाहिए। अपने जीवन में प्रभु के प्रति जिज्ञासा होना चाहिए। मनुष्य का मनन ओर विचार करुणा से भरा होना चाहिए। इसी मनुष्य के अंतर मनन से भक्ति का द्वार खुल जाता है। मनुष्य जीवन में भक्ति का द्वार तब खुलता है। जब मनुष्य को प्रत्येक सन स्मरण करता है जिज्ञासा करता है। अपने मनन में प्रभु प्रति प्रेम भाव ओर आकर्षित करता है। तब मनुष्य के जीवन में भक्ति का द्वार हमेशा के लिए खुलता है।
A:सच्ची भक्ति:
भक्ति सच्चे मनन की आराधना है। अपने प्रभु में समर्पण है। अपने आप को समर्पण करता है। कुछ भी निर्णय नहीं लेता है। जिसे जो आदेश मिलता है वह ही करता है। भक्ति भागवत परमात्मा का स्मरण है। सच्चे मनन से याद करते हो। स्मरण करते हो। आप अपने आपको प्रभु के चरणों में जीवन समर्पण करते हो। भक्ति अंतर मन ओर आत्मा से किया जाता है। भक्ति आत्मा ओर परमात्मा का मिलन है।। जो भी कार्य मिलता है। जो भी सेवा मिलता है। किसी भी मनुष्य की मदद करना । आत्मा ओर आत्मा की शुद्धता मिलन एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति सेवा भाव बने प्रभु भक्ति होती है। यदि ,आप परमात्मा भक्ति करते हो , आप सिर्फ परमात्मा को ही भोग चढ़ना चाहते हो । तो , आप किया करना पसंद करते हो। आप को पाता है, परमात्मा निराकार है। कन कन में है। आप का भोग केसे करेगा।। परमपिता है जगत के पालन हार है। परमात्मा सब कुछ है ओर कुछ भी नहीं। परमात्मा का अंश आत्मा है, तो, भक्ति प्रभु की ही होती है।
जब आप किसी भी भूखे को खाना खिलाते हो। तब आपने संयम परमात्मा को भोग लगाया है।। संयम ने परमात्मा की सेवा की है। सच्ची भक्ति प्रभु प्रति की जाती है। लेकिन , परमात्मा की सेवा ही सच्ची भक्ति होती है। ओर मनुष्य की सेवा ही परमात्मा की भक्ति होती है। आप परमात्मा में आराधना करते हो हमेशा चिंतन करते हो। ओर परमात्मा हम सब के पिता है। जगत के पालन हार है। हमारे करता धरता है, तो मनुष्य की सेवा में ही प्रभु की सेवा चूपी है।। ओर मनुष्य की सच्ची भक्ति भी चुपी है।।
मनुष्य को भक्ति को समझना चाहिए, मिथ्या जीवन से जुड़े नहीं सच्चे भक्ति को समझे ।


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