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Tuesday, July 21, 2020

अनुक्रणिका 8, मनुष्य जीवन में कर्मयोग :/ जीवन की अनमोल विचार

8.मनुष्य जीवन में कर्मयोग :



                                

     मनुष्य के जीवन में कर्म अहम योगदान होता है। कर्म  मनुष्य करता ही रहता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कर्म की  भूमिका होती ही है। कर्म प्रत्येक जीव जंतु ओर प्राणी करता ही है। कर्म से मनुष्य कभी नहीं भाग सकता है।  आखिर में कर्म किस को कहा जाता है। कर्म के बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त करना होता है। कर्म को जानने की प्रयास करे।   यह , संसार ही कर्म से चलता है। संसार के प्रत्येक मनुष्य कर्म करते करते चलते है। सभी कार्य में कर्म करते है। आम तौर पर एक प्राणी जो हर पल अपने परिवार प्रति कर्म करता है। अपने जीवन का अहम योगदान करता है।  अपने जीवन को कर्म से ज़िन्दगी जीता है। ज़िन्दगी की एक एक पल कर्म करते करते जीवन जीता है। मनुष्य जीवन में कर्म सबसे योगदान है। अपना जीवन का कर्तव्य को निभाता है। सत्य ओर धर्म का पालन करता हैं। 


__आखिर में कर्म किया है, कर्म किसे कहते, कर्म कब होता है, कर्म को केसे जाने , कर्म को केसे करे ?


      कर्म एक कार्य होता है। संसार में प्रत्येक जीव कार्य करता है।। जब जीव जंतु ओर प्राणी आदि कार्य करता है। उन कार्य को कर्म से पहचाना जाता है।  एक मनुष्य ओर संसार का प्रत्येक जीव ओर प्राणी अपने जीवन में किसी वस्तु का कार्य करता है । किसी भी प्राणी का सेवा करता है।। तब मनुष्य यानी प्राणी के प्रति कार्य होता है। ओर उने कार्य के बदले कर्म किया होता है। कर्म कार्य से होता है। मनुष्य के जीवन में एक एक पल अपने जीवन का अहम योगदान कर्म करता रहता है।  


     मनुष्य देह से कर्म को समझते है। संसार में मनुष्य के जीवन में किसी भी तरह का कार्य होता है। मनुष्य उन कार्य को कर्म करता रहता है। मनुष्यों को इतना ही स्मरण होता है कि, वह अपने जीवन में कार्य करता है। वोह  सिर्फ अपना काम के रूप में देखता है। मनुष्य के जीवन में काम का स्थान बनता है। कर्म किया है मनुष्य को स्मरण नहीं होता है। ओर मनुष्य अपने जीवन बहुत से अकर्म कार्य के रूप में करता है। ओर उन कार्य को पूर्ण रूप से मान लेता है। मनुष्य अपने जीवन में जो भी कार्य करता है। ओर जीवन में करता आ रहा है। कुछ भी कार्य जो  मनुष्य देह से करता रहा है। वोह सब कुछ कार्य को कर्म कहते है।।



      मनुष्य जीवन में चलना , बेटना , उठना , काम करना , खाना पीना , सुनना , देखना  आदि कार्य को कर्म कहते है । मनुष्य जो कार्य करता है, सब कार्य कर्म होता है।  जीवन में मनुष्य अच्छा बर्ताव करे किसी को सेवा करे अपने परिवार को खुशियों से भरा रखे सब कार्य कर्म रूप  में बन जाते है। एक प्राणी भी कर्म करता है। कर्म ऐसा है कि, मनुष्य किसी हालत में कर्म करता ही रहता है। कर्म से कोई नहीं बचता है।  लेकिन , मनुष्य अपने जीवन में जैसा जैसा कार्य करेगा वैसा वैसा कार्य के रूप में कर्म होगा। अब मनुष्य के जीवन व्यवहार की बात है, मनुष्य के जैसे स्वभाव होगे। ठीक ऐसे ही जीवन में कार्य करेगे। अपने जीवन भर मनुष्य अच्छा कार्य करेगा। मनुष्य के जीवन में सुबह से लेकर रात्रि तक का सफर में मनुष्य जो भी कार्य करता है। अच्छा हो यह गलत कार्य को रूप में कर्म ही  होता है।।  



अब आप समझ ही गई होगे। कर्म किया है , केसे बनता है। इसीलिए, जीवन में अपने कार्य को पूर्ण रूप से सत्य के मार्ग पे लाए। धर्म का पालन करे । परंपरा  के अनुसार जीवन वतित करे। अपने जीवन कर्तव्य को जाने । जीवन में कर्म करते रहे। 



      मनुष्य अपने जीवन में कर्म करता है ।। कर्म से  आशाएं भी बंधी होती हैं। जीवन में किसी भी कार्य को करने के बाद उस से जुड़ी इच्छाएं होती है। जब किसी कार्य को फल की आशा से कार्य करता है। तब कार्य पूर्ण रूप से कर्म के  रूप में बंध जाता है। जैसे कोई मनुष्य अपने आप को परमात्मा को प्रार्थना करता है।। किसी भी देवता के रूप में प्रार्थना करता है। तब उसी रूप में भक्त जो भी मुरादे होता है।। उन कार्य के रूप में कर्म के रूप में भक्त को मिल जाता है।। 


        जब मनुष्य किसी कार्य को बिना आशाएं बंधे कार्य करता है।  तब कार्य को करने के बाद मनन में कुछ पाने की या प्राप्त करने की आशाएं नहीं होती है। तब  कार्य के रूप में निष्काम कर्म कहा जाता है। मनुष्य के भीतर मनन कि लालसा नहीं होती।। कार्य के बदले किसी तरह  की आशा नहीं होती है। मनुष्य अपने आप को कार्य से मुक्त किया है। फल की आशा को पूर्ण रूप से मुक्त किया है। उने सिर्फ कर्म किया है।। कर्म करने के बाद फल की आशा नहीं रही।  तब इसे कार्य को निष्काम कार्य कहलाता है। 


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