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Monday, July 20, 2020

अनमोल विचार शॉर्ट शब्द में जीवन सार डेविन नॉलेज/ईश्वरीय ज्ञान आप का जीवन बदल जायेगा.

अनमोल विचार  शॉर्ट शब्द में जीवन सार

डेविन नॉलेज/ईश्वरीय ज्ञान


आप का जीवन बदल जायेगा.





1.

 हेल्लो दोस्तों,

 मेरा नाम ओझरिया महेश 

मेरा पेज है, mistery of man and soul

 यहां जन्म से  मूत्यू तक और जन्म का ध्येय, उद्देश्य, लक्ष्य, जीवन कार्य , आत्मा को जानना, प्रभु प्राप्ति, मोक्ष धाम , आप को बहुत अच्छा मेसेज मिलता रहेगा।

मेरे पेज को लाइक and follow जरूर करें।



2.

हम चाहते है कि, 

आप को शरुआत से लेके

 अंत तक का ज्ञान प्राप्त हो।

आप अपने जीवन को सफल बनाएं।

सत्य का मार्ग जीवन कार्य ।



3.

बहुत से लोको को लगता है।

प्रकृति की सर्जन  केसे हुआ होगा।

आखिर में केसे किया होगा।

सर्जनहार कहा है।

कोण है।



4.

जब संसार की रचना नहीं हुआ।

कुछ भी जीव मौजूद नहीं था।

ब्रह्मांड की रचना नहीं था।

तब  सिर्फ निराकार रूप में शक्ति मौजूद थी।



5.

एक पल आप सोच के देखे

अनुमान करे कि,

ब्रह्मांड में अंदर के खंड मौजूद नहीं है।

स्थूल लोक, सूक्ष्म लोक, दृश्य लोक

तब भी एक ही शक्ति मौजूद है।

निराकार रूप



6.

निराकार  शक्ति अनंत काल से मौजूद है।

जिस का कोई अंत है।

आज भी इसी रूप में है।

कल भी इसी रूप में था।

जब यह संसार नष्ट हो जाएगा।

तब भी इसी निराकार रूप में मौजूद रहेगा।



7.

जरा सोचिए , जब संसार का रचना नहीं हुआ।

तब भी निराकार रूप में शक्ति मौजूद थी।

आज प्रकृति की सर्जन हुआ है। ।

प्रकृति ही सर्जनहार 



8.

निराकार रूप परमपिता परमात्मा है।

साकार रूप परमात्मा का परमात्मा है।

 सब के पिता है। 

हम उन के संतान है।



9.

निराकार जिस का कोई आकर नहीं होता।

जिस का कोई अंत नहीं। 

जिस का  जन्म नहीं होता।

मुत्यु भी नहीं होती।

जिस का कोई आकर ,रूप ,रंग नहीं होता।



10.

निराकार रूप अविनाशी परमात्मा है।

हवा सुखा नहीं सकती ।

नजर उसे निर्बल नहीं कर सकती।

पानी भीना नहीं सकती।

अग्नि उसे जला नहीं सकती।

तलवार से काटा जा नहीं सकता।

स्पर्श किया नहीं जाता।



11.

निराकार रूप अविनाशी परमात्मा

पत्येक वस्तु में मौजूद है।

निराकार शक्ति ही प्रकृति की सर्जनहार 

शक्ति प्रकृति है।



12.

निराकार रूप में ही समग्र ब्रह्मांड समाया है।

 निराकार में प्रत्येक वस्तु वाश करती है।

प्रकृति की सर्जन में शक्ति मौजूद है।

जब निराकार ही प्रकृति है।



13.

निराकार के बिना कुछ भी नहीं।

प्रकृति की सर्जन समग्र संसार ।

सर्जन में प्रत्येक वस्तु नाशवंत है।

शाश्वत अनंत काल तक शक्ति

निराकार रूप अविनाशी है।



14.

निराकार सर्व परी है।

अनंत काल से मौजूद 

एक शक्ति एक परमात्मा 

एक जगत गुरु 

एक ही एक समग्र प्रकृति 

निराकार में समाई है।



15.

निराकार के शिवा

 इस संसार में कुछ भी नहीं।

निराकार एक विशाल रूप है।

जिस में सभी देव मौजूद है।

साकार रूपी परमात्मा 



16.

सब से बड़ा निराकार रूप है।

सभी देवता उने पूजते है।

सब का मालिक निराकार 

शक्तिओ का शक्ति महाशक्ति है।

निराकार रूप दिव्यशक्ती



17.

निराकार परमात्मा एक विशाल रूप

जिस में प्रत्येक जीव समाया है।

ब्रह्मांड भी मालिक के भीतर समाया है।

सब एक ही मालिक के भीतर समाए है।



18.

निराकार रूप  अविनाशी परमात्मा है।

निराकार रूप अदृश्य परमात्मा

एक विशाल रूप अदृश्य शक्ति है।

निराकार परमात्मा से कोई दूसरी शक्ति नहीं।

निराकार परमात्मा की मर्ज से ही

 साकार रूप जन्म मनुष्य अवतार ।



19.

साकार रूपी परमात्मा धरा पे जन्म

निराकार की मर्जी होती है।

मनुष्य आदिकाल से साकार रूप को जान पाए नहीं । 

निराकार रूप अविनाशी परमात्मा 

साक्षात रूप साकार  भगवान धरा पे आते है।



20.

साकार रूप एक मनुष्य रूप में

किसी भी परिवार में जन्म लेता है।

मानव कल्याण ,धर्म पूर्ण स्थापना और उधार के लिए 

साकार रूप जन्म होता ही रहता है।

लेकिन मनुष्य इस रूप से अवंचित होते है।



21.

निराकार रूप  और साकार रूप 

जब निराकार परमात्मा आदेश का पालन करते है।

साकार रूप परमात्मा धरती पर जन्म लेता है।

फिर भी निराकार रूप अविनाशी परमात्मा की 

भक्ति साकार रूपी परमात्मा करते है।



22.

निराकार परमात्मा को जानना 

मुश्किल ही नहीं है।

साकार रूपी परमात्मा 

सतगुरु के रूप में 

ज्ञान की ज्योत जलाती है।

मानव कल्याण के लिए उधार






23.

परमात्मा  (परम+आत्मा)

पुरुष तथा प्रकृति में वाश किया।

 दो आत्म का मेल परमात्मा

निराकार रूप अविनाशी परमात्मा

आत्मा और परमात्मा एक हो जाना 

मोक्ष प्राप्ति होती है।



24.

जब परमब्रह्म का बटवारा हुआ।

परमात्मा पुरुष तथा प्रकृति में वाश किया।

उने पूर्ण परमब्रह्म में मिलन होना था।

तब मोहमाया तथा अंधकारने आत्मा को गेर लिया।



25.

आत्मा परमात्मा का अंश है।

आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है।

आत्मा जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना है।



26.

आत्मा को मोक्ष प्राप्त करना है।

जन्म मरणना चक्र 

दूर करने दिव्य देह की जरूर होती है।

आत्मा को मोक्ष प्राप्त के लिए

 मानव देह सर्व उत्तम है।



27.

पुरुष तथा प्रकृति में वाश करने वाले जीव

मोक्ष प्राप्ति के लिए 

जन्म - मरण के चक्र काट रहे होते हैं। 

प्रत्येक जन्म में बड़ा कष्ट उठाता है। 

मुक्ति के लिए सही जन्म मनुष्य अवतार



28.

आत्मा परमात्मा का अंश है

आत्मा को ध्येय, उद्देश्य जीवनकार्य 

मुक्ति पाने का उधार करना है।

अपने आत्मा को परमात्मा के 

रूप में पाना ही जीवनकार्य



29.

आत्मा एक अदृश्य ऊर्जा है।

हवा सुखा नहीं सकती 

पानी भिना नहीं सकती

अग्नि जला नहीं सकती

अस्त्र शस्त्र से मारा नहीं जा सकता।



30.

आत्मा अमर है।

आत्मा का कोई अंत नहीं होता।

आत्मा एक अंश है।

आत्मा को जानना कठिन ही नहीं।



31.

आत्मा  का रूप परमात्मा का अंश

परमब्रह्म का बटवारा हुआ

आत्मा प्रत्येक देह को धारण करता है।

तब तक जब आत्मा को मोक्ष ना मिली  हो।



32.

आत्मा को शांति प्रदान

आत्मा को मोक्ष प्राप्ति होती है।

आत्मा अनेक जन्म मरण में 

कष्ट मिलता रहता है।

संयम आत्मा को जानना ही मोक्ष



33.

आत्मा शरीर में रहकर भी अमर होता है।

आत्मा का जन्म और मूत्यू ही नहीं होती है।

आत्मा देह को बदलता रहता है।

आत्मा अमर  है।



34.

शरीर का नाश किया जा सकता है।

किन्तु , आत्मा नाश नहीं किया जाता।

आत्मा सर्व परी अविनाशी है।

आत्मा शरीर में रहकर भी अमर है।



35.

आत्मा और मनुष्य का संबंध

 मूत्यु तक ही सीमित है।

मनुष्य देह नाश हो जाता है।

आत्मा अमर होता है।

आत्मा पूर्ण नया देह धारण करता है।



36.

मनुष्य का देह से बना है।

वायु ,जल, आकाश , अग्नि और पूथ्वी

मनुष्य का देह इन पांच तंत्र

छः वा तंत्र आप को जानना है।



37.

जन्म चार तरह से होता 

पानी में से जन्म /मनुष्य और पशु आदि

पछीने से जन्म/विंछि, मंकड़ आदि

अंडे में से जन्म /सर्प, चिड़िया आदि

बीज में से जन्म /पेड़ पोंदे,वनस्पति छोड़ आदि



38.

लख 84 जन्म योनि होते है।

पानी में से जन्म /21 लाख

पछिने से जन्म/21 लाख

अंडे में से जन्म /21 लाख

बीज में से जन्म /21 लाख



39.

लख 84 जन्म से  मनुष्य जन्म 

उत्तम कहा गया है।

मनुष्य जन्म से ही आत्मा को जान सकते है।

मनुष्य द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति



40.

मनुष्य जन्म का उद्देश्य जीवनकार्य

आत्मा को जानना है ।

आत्मा को शांति प्रदान करना है।

आत्मा को मनुष्य जन्म से जाना जा सकता है।



41.

मनुष्य द्वारा संसार में ज्ञान की 

ज्योत प्रकाशित किया जा सकता है।

ज्ञान का दीप जलाकर

 मानव कल्याण को उधार करे।



42.

मनुष्य का जन्म ही 

मोक्ष प्राप्ति के लिए हुए है।

मनुष्य को अपना ध्येय, उद्देश्य, लक्ष्य 

 प्रभु प्राप्ति के लिए अपनाना है।



43.

मनुष्य का जीवन अनमोल है।

मनुष्य का जीवन सफल बनाए

भक्ति और ज्ञान की प्राप्ति हो।

परमात्मा की प्राप्ति हो।



44.

मनुष्य जीवन का जन्म 

केवल, अपने आत्मा को मुक्ति पाने के लिए 

 परमात्मा को जानने का संयम को 

आत्मा के रूप में जानना।



45.

मनुष्य जीवन अनमोल रत्न है।

मनुष्य देह आत्मा को जानना है।

आत्मा का कार्य किया है।

मनुष्य अपने जीवन में देवी कार्य को जाने।



46.

देवी कार्य मनुष्य द्वारा ही संभव है।

देवी कार्य मनुष्य जन्म को उदेश्य 

संयम को जानना ही सीमित नहीं।

आत्मा और मनुष्य का संबध को जाने 



47.

भक्ति से मनुष्य में भावनाएं  जाग उठता है।

मनुष्य जीवन का सचाई को समझता है।

  मनुष्य देवी कार्य को जान लेता है।



48.

मनुष्य जीवन की देवी कार्य को जान लेता है।

जीवन कार्य को जानने का एक ही मार्ग 

भक्ति का मार्ग होता है। 

भक्ति से ही मनुष्य सत्य को जानन पता है।



49.

भक्ति से मनुष्य को आशाएं जाग जाती है।

मनुष्य भक्ति के मार्ग से परमात्मा को

 प्राप्त करना

मनुष्य अपने इच्छाएं प्रभु प्राप्ति करना  है।

प्रभु दर्शन एक मात्र मार्ग



50.

जब  मनुष्य के जीवन में भक्ति जीवन में आता है।

तब मनुष्य परमात्मा की चिंतन करता रहता है। 

जीवन का एक मात्र मार्ग प्रभु दर्शन

मनुष्य जीवन को सार्थक बनाएं



51.

भक्ति से मनुष्य परमात्मा को 

पा सकता है।

भक्ति में ही शक्ति है

प्रभु का चिंतन ही मनुष्य को 

सार्थक जीवन बनता है।



50.

भक्ति और कर्म से साथ बंधा मनुष्य 

परमात्मा को पा ही लेता है।

ऐसे मनुष्य को प्रभु दर्शन 

जल्दी प्राप्त हो जाता है।



51.

मनुष्य को प्रभु दर्शन 

परमात्मा की कृपा होती है।

तब मनुष्य को ज्ञान की दृष्टि मिलती है।

 ब्रह्मज्ञान का प्रकाश  दिव्यदृष्टी 



52.

ब्रह्मज्ञान, सतगुरु की महिमा

हो तो मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो।

भक्ति का मार्ग  ज्ञान का प्रकाश



53.

ब्रह्मज्ञान भक्ति के मार्ग प्राप्त होता है।

मनुष्य के जीवन भक्ति जरूरी है।

भक्ति के मार्ग से सत्य को जान सकते है।



54.

मनुष्य को ब्रह्मज्ञान का प्राप्त होता है।

ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हो जाता है।

ज्ञान में मनुष्य को परमात्मा का साक्षात् दर्शन होता है।

ईश्वरीय ज्ञान मनुष्य को आत्मा को जान लेता है।

कि, वो शरीर नहीं केवल एक आत्मा है।




55.

ईश्वरीय ज्ञान से मनुष्य को आत्मा का कार्य 

उद्देश्य जीवनकार्य के बारे में पता हो जाता है।

कि, आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है।

आत्मा को मोक्ष प्राप्त करना है।




56.

ईश्वरी ज्ञान से मनुष्य जन्म मरण का 

चक्र को ब्रह्मज्ञान से जान लेता है।

कि, मनुष्य केवल साधन है।

आत्मा को परमात्मा रूप जान लेता है।

आत्मा परमात्मा का एक अंश है।




57.

मनुष्य को जान होता है।

 आत्मा और परमात्मा के रूप

केवल, मोक्ष प्राप्त करने हेतु 

मनुष्य जन्म हुआ है।




58.

मनुष्य आत्मा और परमात्मा

बीच का अंतर जान लेता है।

आत्मा का कार्य मोक्ष प्राप्त करना है।

परमात्मा अपने अंश को सही दिशा दिखता है।

मनुष्य जन्म से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।




59.

मनुष्य को ज्ञान होता है।

कि , मनुष्य को जन्म - मरण के चक्र 

और लख 84 फेरे से मुक्ति पाना है।

आत्मा को निराकार परमात्मा में एक होना है।




60. 

मनुष्य को ब्रह्मज्ञान से जीवनकार्य 

ज्ञान हो जाता है।

केवल, मनुष्य जन्म देवी कार्य करना है।

आत्मा को परमात्मा से मिलन होना है।




61.

मनुष्य को अब ज्ञान हो जाता है।

कि, वो मनुष्य नहीं

एक शरीर भी नहीं है।

मनुष्य को जान होता है।

संयम के आत्मा है। परमात्मा अंश




62.

मनुष्य को देवी ब्रह्मज्ञान होता है।

मनुष्य को यह जान होता है।

संयम एक आत्मा है।

मनुष्य का जीवन महात्मा होता है।

एक ज्ञान का प्रकाश जा जाता है।




63.

मनुष्य का जीवन ज्ञान से भर जाता है।

संयम को आत्मा के रूप में देखता है।

आत्मा को परमात्मा के रूप पा लेता है।

मनुष्य जीवन भक्ति से  भर जाता है।




64.

मनुष्य का जीवन भक्ति से भरा होता है।

मनुष्य जन्म देवी कार्य में सफल हो जाता है।

मनुष्य का उद्देश्य जीवनकार्य को पाके धन्य होता है।

मनुष्य जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है।




65.

मनुष्य जन्म देवी कार्य करने हुआ था।

मनुष्य अपने जीवन में भक्ति के मार्ग 

अपनी देवी कार्य को ब्रह्मज्ञान से पा लेता है।

ज्ञान से मनुष्य आत्मा को शांति प्रदान हो जाता है।




66.

मनुष्य का जीवन अनमोल रत्न हो जाता है।

मनुष्य ज्ञान से संसार में  ज्ञान रूपी तेज पा लेता है।

जीवन जन्म मरण से मुक्त हो जाता है।

मोहमाया अंधकार से मुक्त हो जाता है।




67.

ज्ञानी पुरुष  जीवन के प्रत्येक क्षण

ज्ञान रूपी तेज से  जीवन जीता है।

मनुष्य ज्ञान को सबसे पहले रखता है।

 जीवन को प्रभुमय बनता है।




68.

मनुष्य को ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होने के बाद

प्रत्येक क्षण परमात्मा की चिंतन करता रहता है।

सत्संग , सेवा और  स्मरण करता रहता है।

मनुष्य भक्ति से भरा जीवन जीता है।




69.

मनुष्य को ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने के बाद

ज्ञान को  जीवन में लाने के लिए 

भक्ति की  जरूरी होती है।




70.

मनुष्य जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त

कर लेता है।

आत्मा, परमात्मा को जान लेता है।

संयम को आत्मा के रूप जान लेता है।

जन्म मरण से मुक्त हो जाता है।

जीवन ज्ञान से भरा हो जाता है।




71.

मनुष्य को ज्ञान हो जाता है।

संसार मिथ्या है।

जीवन में अयोग्य कार्य करना

मोहमाया अंधकार में जीवन जीना 

अपनी जरूरतों को पाना 

अनमोल जीवन को नष्ट करना




72.

मनुष्य को ज्ञान होता है।

आयु में निधन देह होता है।

आत्मा की मुत्यु नहीं होती

आत्मा अमर है।

देह का नाश होता है।




73.

मनुष्य जीवन में भक्ति के मार्ग

ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करता है।

ब्रह्मज्ञान से मनुष्य आत्मा को जान लेता है।

वो, शरीर नहीं केवल आत्मा हैं।

आत्मा के रूप में परमात्मा का साक्षात्कार दर्शन होता है।

कि, वो परमात्मा का अंश है। एक आत्मा 




74.

मनुष्य के अंतिम समय 

जब मनुष्य देह से प्राण त्याग ते समय 

ब्रह्मज्ञान का चिंतन करता है।

परमात्मा का ध्यान करते स्मरण करता है।

स्मरण करते हुए प्राण त्याग देता है।

मोक्ष धाम, परमात्मा के सरण में चला जाता है।

परमात्मा, आत्मा को निराकार रूप में छमा लेता है।




75.

ज्ञानी महापुरुष जानते है।

आत्मा और शरीर का संबध

कि, मनुष्य शरीर नहीं है।

केवल , आत्मा है।




76.

ज्ञानी महापुरुष शरीर से बंधे नहीं होते हैं।

शरीर केवल एक साधन है।

आत्मा शरीर में वाश करता है।

आत्मा ही शरीर को चलता है।




77.

जब तक आत्मा शरीर में है।

तब तक मनुष्य देह चलती फिरती है।

जो भी कार्य होता है।

संयम , आत्मा ही करता है।




78.

मनुष्य देह अनमोल तोहफा है।

देखना , सुनना, बोलना , चलना 

हाथ से कार्य करना 

 मन से विचार करना  

आदि, शक्ति मनुष्य को प्राप्त हुआ है।




79.

मनुष्य प्रबल , चतुराई, बुद्धि, विचार , समझ शक्ति, 

अपने साथ दूसरे का  भूख मिटाना 

दूसरी से भी प्यार से रहना 

दूसरी को सही दिशा दिखना

मनुष्य में एक ऊर्जा होती है




80.

ज्ञानी महापुरुष ज्ञान से बंधे हुए रहते है।

अपनी देह और आत्मा को मुक्त कर देते है।

जीवन को परमात्मा को समर्पण कर देता है।

जीवन का प्रत्येक क्षण परमात्मा की चिंतन से 

जीवन जीता जाता है।




81.

ज्ञानी महापुरुष जीवन के प्रत्येक कार्य को 

परमात्मा का आभार व्यक्त किया करते है।

जो भी कार्य होता है

निराकार परमात्मा की कृपा स्मरण करते है।


82.

ज्ञानी महापुरुष जानते है

अगर जिभा कट जाए

तो, समग्र शरीर को पीड़ा होती है।

उसी तरह , संसार में एक भी मनुष्य 

पीड़ित है।

तब तक वास्तव में,

 एक भी मनुष्य का सुख सपूर्ण नहीं।




83.

ज्ञानी महापुरुष जानते है।

जब मनुष्य को दुःख , पीड़ा दिया जाए

तो, मनुष्य को दुःख नहीं 

केवल, आत्मा को पीड़ा दिया जाता है।


84.

जब मनुष्य को दुःख पीड़ा दिया जाता है।

तब आत्मा को पीड़ा होती हैं।

जब आत्मा को पीड़ा होती है।

तो, वास्तव मैं परमात्मा को दुःख, पीड़ा होती है।




85.

मनुष्य किसी भी व्यक्ति को दुःख पीड़ा 

देने में कुछ भी कसर नहीं छोड़ता है।

मनुष्य जी जान से प्रयत्न करता रहता है।

लेकिन, हम भूल रहे है। 

शरीर को दुःख, पीड़ा, सुख को केवल भोगना पड़ता है।




86.

किस भी व्यक्ति को दुःख देना 

संयम के आत्मा को पीड़ा देना 

संयम ने परमात्मा को पीड़ा दिया है। 




87.

मनुष्य का जीवन दया , करूणा, प्रेम से भरा हो चाहिए

दूसरे मनुष्य प्रति प्रेम भाव हो

सब को एक मान दे।

सब को सामान माने ।

मनुष्य प्रत्येक मनुष्य को एक ही पिता के संतान माने।




88.

संसार में मनुष्य अपनी  काबिलियत से महान बनता है।

मनुष्य जीवन में कामयाबी हासिल कर लेता है।

समाज में  एक अलग पहचान होती है।

लेकिन , मनुष्य में इंसानियत होना जरूरी है।




89.

संसार में सबसे अच्छा प्राणी 

             और

संसार विचित्र जानलेवा भुरा प्राणी 

इंसान ही होता है।



90.

तमस रजस और तत्व से मनुष्य का व्यहार 

पता चाहता है। 

संसार में मनुष्य जीवन का परिचय होता है।

मनुष्य का स्वभाव कैसा है।




91.

तमस : बिना अच्छे भूरे का  विचार करे 

अपना जीवन जीता है।

उने तांतिक जीवन कहते है।

ऐसे मनुष्य के जीवन में अंधकार होता है।

ज्ञान तनिक भी नहीं होता है।




92

रजस: ऐसे मनुष्य में ज्ञान  की प्राप्ति होती है।

लेकिन मनुष्य मोहमाया और मनन कि लालशा 

विचारों से बंधे होते है।



93.

तत्व: इसे मनुष्य के जीवन में अंधकार और  मोहमाया से मुक्त होते हैं।

 तत्व ज्ञान से बंधे होते है।

संयम को आत्मा के रूप में जान लिया होता है।

जीवन ज्ञान रूपी तेज होता है।




 Thank for reading.



                        The end





































































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