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Tuesday, July 21, 2020

अनुक्रणिका 4,मनुष्य का जीवन कार्य / जीवन की अनमोल विचार

4.मनुष्य का जीवन कार्य


                        

   संसार में उत्तम जन्म मनुष्य का है। मनुष्य का जीवन  अनमोल है। मनुष्य जो भी कार्य करना चाहता है। वह सब कुछ कर सकता है। संसार में मनुष्य ही है, सब प्राणी से प्रेम भाव, सब को एक साथ ले चलता है। सब को एक सम्मान मानता है।  सब को अपनों की तरह देखता है। कोई किसी से अलग नहीं होता।  

   अब बात मनुष्य जीवन कार्य की है? तो, मनुष्य जीवन के बारे में कुछ जान लेते है। सब मनुष्य किस तरह जीवन गुजारते हैं। जीवन में केसे केसे कार्य करते है। किसी भी कठानिए को केसे पार करते हैं। 



    जब मनुष्य अवतार इस दुनिया में आता है। एक बालक का जन्म होता है। नाना सा बालक पवित्र आत्मा के रूप में जन्म लेता है।  बालक में किसी ज्ञान का प्रकाश नहीं होता । किसी अच्छे भूरे का ज्ञान नहीं होता। निंदा, नफरत, वेर नहीं होता। केवल एक मनुष्य अवतार है एक पवित्र आत्मा।  जन्म से पहले का जन्म स्मरण नहीं होता। नहीं होता है किस अवतार में हुआ था जन्म। तब में किया था। कैसा था। कहा था। मेरे माता पिता , भाई बहन कोन थे। इस जन्म में  कुछ भी याद नहीं होता। कभी कभी लोग यह भी करते है। किसी को पहले जन्म याद आता है। कहते है कि , पुनर्जन्म से होता है। पहले जन्म का स्मरण होता है। सब कुछ याद आने लगता है।  लेकिन , मेरे लिए तो यह सब अफ़वा लगता है। केवल , परमात्मा ही है। जो पुनर्जन्म को जान सकता है। मनुष्य को पुनर्जन्म को स्मरण करना बेहद ही कठिन है। जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था।   " मैने पहले भी जन्म लिया था। तब में राम था। आज कृष्ण हु" जब तक पाप बढ़ता जाएगा। तब धर्म ,और सत्य को पूर्ण स्थापना के लिए धारा पे शक्ति जन्म लेती रहेगी। यह बात सत्य है। 


    इस जन्म बालक को इसी जन्म के माता पिता, भाई बहन  याद आता है। जैसे जैसे बालक बड़ा होता जाता है। वैसे वैसे बालक के कर्म होते जाते है। बालक ज्ञान की प्राप्ति  माता पिता और समाज के व्यवहार से आता है। बालक जो अपने आसपास देखता है। वहीं , अपने जीवन में ग्रहण करता जाता है। बालक में किसी भी अच्छे भूरे का ज्ञान नहीं होता है।  माता पिता के संस्कार से ही बालक का व्यवहार बनता है। बालक बड़ा होता जाता है। कर्म करता जाता है। जीवन में प्रत्येक कर्म बालक करता जाता है। जो भी ग्रहण होता है। बालक उसी कार्य को समर्पण होता जाता है। बालक में कर्म ठीक वैसे ही बनते जाते है।  बालक को अच्छा संस्कार देना मातापिता का कर्तव्य होता है। कि,अपने बालक को अच्छे संस्कार दे। बालक अपने आंखों के सामने बड़ा बनता है। अब अपने संतान में अच्छे संस्कार है या फिर भूरे संस्कार। माता पिता का व्यवहार बर्ताव पे आधार होता है। जैसे माता पिता के कर्म होगे । वैसे ही अपने संतानों मे संस्कार देखने मिलता है। 



    एक बालक अज्ञात है। किसी भी ज्ञान का भंडार नहीं होता।  मिथ्या जीवन में प्रत्येक कार्य करना होता है। मनुष्य अपनी अपनी जीवन में कुछ बनना चाहता है।  मनुष्य सब ज्ञान को पता है। एक माता पिता अपने संतान को संसार में आगे बढ़ने के लिए अभ्यास करवता है। कि, मेरा संतान  अपने पैरो पे खड़ा हो सकेगा। अपने स्वप्नों को पूरा करे। काबिल इंसान बने। बड़ा बने। पैसेवाला बने। अपने मातापिता नाम उचा करे। महान बने। इसी प्रकार एक माता पिता अपने संतान को पढ़ता, लिखता, शिक्षित व्यक्ति बनता है।  अपने सारी राशि अपने संतान के पीछे लगती है। यह सोच में कि मेरा बेटा एक दिन बड़ा इंसान बनेगा। । सिर्फ अपना बेटा सुख रहे। किसी भी तरह का दु:ख ना हो। जब कुछ अपने संतान के लिए करता है। अपनी सारी ज़िन्दगी अपने संतान के पीछे बिता देती है। 


   संतान बड़ा हो जाता है। अपनी जीवन में बहुत खुश होता है। अच्ची नौकरी होती है। काफी अच्छे पैसे कमा लेता है।  अपने जीवन सफल होता है। पैसा है, खुद का घर, जमीन जायदाद , गाड़ी - बंगला , एसो आराम होता है। अब मातापिता की महेनत और लगन से अपने संतान के पास सब कुछ प्राप्त होता है।अपनी जीवन खुशियों से जीता है।  कुछ समय में विवाह लायक होने के बाद संतान कि माबाप सादी कर देते है। अपने मातापिता का सबसे बड़ा कर्तव्य को पूरा कर देता है।  


    अपने  संतान के बेटे होते है। परिवार थोड़ा बड़ा होता है। फिर भी परिवार खुशियों से रहता है। अपने संतान को पहले से ज्यादा जीमेदारी आती है। अपने मातापिता के साथ अपनी बीवी और बच्चे के बारे में  सोचना पड़ता है। सब के बारे में सोचना और घर को चलाना पड़ता है। ठीक , ऐसे ही अपने जीवन को बीतता जाता है। 


      जीवन में बहुत सी कठिनाई आती है। लेकिन अपने जीवन में आनंद माना के दु:खों से पार लगता है। एक एक पल जीवन की कल्पना को , अनुभवी को , सीखो को , जीवन में ग्रहण करता है। बड़ी महेनत से अपने जीवन में सफल बनता है।  घर संसार सुखो से भर जाता है।


  कुछ समय के बाद ............

अपने मातापिता ने किया हुआ  अमूल्य योगदान ठीक उसी तरह अपने संतानों में भी वैसा ही कार्य करना पड़ता है।  जैसे मातापिता अपने संतान के लिए जो भी किया है। वैसे ही चक्र फिरता है। सब को वैसे ही कार्य करना पड़ता है।  अपने मातापिता ने संतानों को पाल पोस के बड़ा किया। कामयाब काबिल इंसान बनाया । अच्छी तरह से शिक्षित बनाया। अच्छी नौकरी मिली।  अपने संतानों को सादी करवाए । अपने संतानों को मिलकत खड़ी करवाए। ठीक ऐसे ही कार्य करना पड़ता है। 


    अब संतानों के बेटे ही बड़े होते जाते है। जीवन को सब कुछ कार्य प्राप्त करता है। पढ़ लिख के शिक्षित व्यक्ति बनता है। अच्छी नौकरी करता है। अपने कार्य को सही ढंग से करता है। अच्छी खासी पैसे कमाता है। अपना खुद का घर बनता है।   गाड़ी - बंगाल , जमीन जायदाद , इज्जत , एसो आराम , सब कुछ होता है। अपनी जीवन में बहुत खुश रहता है। पैसे की कभी कमी नहीं होती है। 


कुछ समय के बाद ............

संतानों के बेटे भी विवाह लायक होते है। मातापिता अपने बेटे के लिए । एक अच्छी सी बहू खोजना चालू करता है।  और अपने बेटे की शादी कर देते है। और अपने मातापिता की तरह ही संतानों की भी जवाबदारी पूर्ण होती है। फिर , संतो के बेटे के बेटे हो जाएगा।  और यह चक्र ऐसे ही चलता रहता रहेगा। अपनी जीवन बीत जाता है। इस संसार में नीति नियमो से चलता है। जो चक्र चलता है। वह चलता रहता है। जैसे दिन - रात  , दुःख सुख की तरह जो संसार में होता है।  


    मनुष्य जीवन में जो भी कार्य करना होता है। अपनी जीवन जो भी पाना होता है। वह सब मनुष्य पा लेता है। जीवन में बहुत कुछ पाने के लिए कार्य करता रहता है।  जीवन में सफल होने के लिए कितना संघर्ष करता है। स्वप्नों के उचायो पे खड़ा होता है। सारे स्वप्ने पूरे करता है। जीवन में सफल और लक्ष्य को पार करते है।  एक कामयाब इनसान बनता है। संसार में इज़त सोरत ,नाम , को पा लेता है। और जीवन बीतता जाता है।

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